नानावती आयोग
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यूपीए सरकार अपने 10 साल के शासन के दौरान गुजरात नरसंहार के लिए कोई नरेंद्र मोदी के खिलाफ कार्यवाई क्यों नहीं कर सकी? इसका जवाब जांच आयोगके कानूनों में है, जो केंद्र सरकार को पहले से ही जांचे जा रहे मामले पर एक और जांच आयोग का गठन करने से रोकता है।
लोग अक्सर पूछते हैं कि केंद्र में 2004-2014 के दौरान 10 साल के लिए यूपीए सत्ता में थी। अगर मोदी गुजरात में 2002 नरसंहार में वास्तव में दोषी था, तो आखिर केंद्र सरकार उसके खिलाफ कुछ भी क्यों नहीं कर सकी?
इसका जवाब जांच आयोग अधिनियम 1952 के कानूनी प्रावधानों में निहित है, यह एक राज्य या केन्द्र सरकार को पहले से ही एक मौजूदा आयोग द्वारा जाँच किये जा रहे किसी मसले के लिए, एक और जांच आयोग बनाने से रोकता है । यथार्थ रूप में, अधिनियम की धारा 3 ये कहती हैं:[1]
जहां किसी भी मामले में जांच करने के लिए एक राज्य सरकार द्वारा किसी भी ऐसे आयोग को नियुक्त किया गया है, जब तक कि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त आयोग कार्य कर रहा है, केन्द्रीय सरकार एक ही मामले में जांच करने के लिए दूसरा आयोग नियुक्त नहीं करेगी। बशर्ते कि, केन्द्रीय सरकार की राय है कि जांच का दायरा दो या अधिक राज्यों के लिए बढ़ाया जाना चाहिए।
नानावती-शाह/मेहता आयोग
कल्पना कीजिए कि आप नरेंद्र मोदी हैं। गुजरात में बड़े पैमाने पर दंगों के बाद, आप की हर जगह आलोचना हो रही है। यहां तक कि आपकी अपनी पार्टी के प्रधानमंत्री, इशारा कर रहे हैं, कि आप अपने ‘राज धर्म’ का पालन नहीं कर रहे है। आप पर हिंसा को बढ़ावा देने में भागी होने का संगीन आरोप है। ऐसे में आप क्या करते हो?
आसान- एक न्यायिक जांच आयोग की नियुक्ति। ये केवल कार्रवाई करने की सलाह दे सकते हैं, लेकिन नहीं वास्तव में कोई भी कार्रवाई नहीं कर सकते, और किसी को सजा नहीं दे सकते।
गुजरात में दंगों की शुरुआत के हफ्ते भर के भीतर, जबकि अभी हिंसा जारी ही थी, 6 मार्च 2002 को गुजरात की सरकार 1952 के जांच आयोगों के अधिनियम की धारा 3 के तहत गोधरा ट्रेन जलने की घटना, उसके बाद हुए दंगों और, गोधरा में और बाद में राज्य भर में गड़बड़ी – दोनों से निपटने के लिए किए गए प्रशासनिक उपायों के से पर्याप्तता या तुरंत रोकने में अभाव की जांच में जांच करने के लिए, एक जांच आयोग नियुक्त किया। गुजरात उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस जी शाह, इस आयोग के इकलौते सदस्य थे। अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए आयोग को तीन महीने का समय दिया गया था।[2]
शाह आयोग: जांच का दायरा (2002)
1 ये पता लगाने के लिए-
(A) उन तथ्यों, परिस्थितियों और घटनाचक्र की जांच जिनकी वजह से २७ फरवरी २००२ को गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के कुछ डिब्बों की आग लगाने की घटना घटी ।
(B) उन तथ्यों, परिस्थितियों और घटनाचक्र की जांच, जिनकी वजह से गोधरा की घटना के बाद राज्य में हिंसा की वारदातें हुईं ।(C) गोधरा में गड़बड़ी और बाद में राज्य में गड़बड़ी के साथ निपटने में प्रशासनिक उपायों की पर्याप्तता।
२. ये पता लगाने के लिए की क्या गोधरा की घटना पूर्व नियोजित थी, और क्या एजेंसियों के पास कोई ऐसी जानकारी उपलब्ध थी, जिसको घटना को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था ।
३. भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए उपयुक्त उपायों की सिफारिश करने के लिए।
यह स्पष्ट है कि शाह आयोग को जिस तरह से जांच के लिए कहा गया, उसमे इसकी चिंता ज्यादा है कि गोधरा में क्या हुआ, और उसकी तुलना में अहमदाबाद और दूसरी जगहों में हुई गंभीर घटनाओं पर यह कम महत्व देता है । गोधरा की घटना के पीछे पहले की योजना के तत्व, यदि हों, को देखा जा रहा है, जबकि अहमदाबाद तथा अन्य जगहों में घटनाओं के संबंध में ऐसा ही रवैया अपनाने की जरूरत पर साफ़ तौर से ध्यान नहीं दिया गया।
इसके अलावा, जस्टिस के.जी. शाह, भाजपा के करीबी थे, और उनका अल्पसंख्यक विरोधी फैसले देने का एक इतिहास था। मुसलमानों के विषय में एक मुद्दे पर उनके फैसलों में से एक को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया था, जो कि उनकी क्षमता और निष्पक्षता पर संदेह उठाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि
“न्यायाधीश का निष्कर्ष सबूत की समझ पर नहीं, बल्कि कल्पना पर आधारित है”।
“थोड़े ही समय के भीतर गुजरात सरकार को सार्वजनिक हित में एक सदस्यीय आयोग के पुनर्गठन की ज़रुरत महसूस हुई। इसलिए, सरकार अधिसूचना द्वारा 21 मई, 2002 से भारत के उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश (जस्टिस जी. टी. नानावती) को एक सदस्य और आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर दिया गया। 3-6-2002 पर सरकार 6 मार्च अधिसूचना में संशोधन किया और जांच के दायरे में 30 मार्च 2002 तक गुजरात में हुई साड़ी हिंसा की घटनाओं को शामिल कर दिया.” [3]
तहलका स्टिंग
तहलका: तो नानावती बिल्कुल आप लोगों के खिलाफ है?पंड्या: नानावती एक चतुर आदमी है… वह पैसे चाहता है… दोनों न्यायाधीशों में ,के जी शाह बुद्धिमान है.. जो अपनेवाला है [वह हमारा आदमी है]…उसको हमारे लिए सहानुभूति है… नानावती पैसे के पीछे है…
2004-जांच के दायरे में परिवर्तन
.. 20-7-2004, पर सरकार 6 मार्च की उस अधिसूचना में संशोधन किया और जांच के दायरे को और बढ़ा दिया ।निम्न दो खंड जोड़े गए थे:(घ) खंड (क) और (ख) की दोनों घटनाओं में तत्कालीन मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के किसी भी अन्य मंत्री, पुलिस अधिकारियों, अन्य व्यक्तियों और संगठनों की भूमिका और उनका आचरण ;(ई) तत्कालीन मुख्यमंत्री और/या उनके मंत्रिमंडल के किसी भी अन्य मंत्री और पुलिस अधिकारियों की भूमिका और आचरण :
(i) किसी भी राजनीतिक या गैर-राजनीतिक संगठन जो किसी भी उपरोक्त संदर्भित घटनाओं में शामिल हुआ था, के साथ निपटने में;(ii) सांप्रदायिक दंगों के पीड़ितों की सुरक्षा, राहत और पुनर्वास उपलब्ध कराने में, और(iii) राष्ट्रीय मानवाधिकारआयोग द्वारा समय समय पर दिए गए सिफारिशों और निर्देशों के मामले में.”
उस अधिसूचना द्वारा सरकार ने भी जांच के दायरे में 31-5-2002 तक जगह ली थी हिंसा की घटनाएं शामिल है।
बी श्रीकुमार की गवाही, और तथ्यों को दबाने के लक्षण
प्रश्न: अपने शपथ पत्र के कवर पत्र में आप ने कहा है ‘आयोग द्वारा अपने पत्र संख्या …में जैसा निर्देशित किया गया है..., मैं अपना आठवाँ हलफनामा संलग्न करता हूँ‘और हम आपके सामने यह रख रहे हैं कि आयोग ने उक्त पत्र द्वारा आपको हलफनामे को फ़ाइल करने के लिए निर्देशित नहीं किया है। (उन्हेंदिनांक 3.8.2011 का पत्र दिखाया जाता है.)उत्तर: मैंने ‘कर सकते हैं’ शब्द को एक निर्देश के तौर पर समझा और इस्तेमाल मैंने 15.9.2011 के अपने पत्र में ऐसा कहा।
प्रश्न: आयोग यह स्पष्ट करना चाहता है की उसने सुश्री मल्लिका साराभाई और श्री संजीव भट्ट द्वारा उठाए गए मसले के संबंध में आपको हलफनामा दायर करने के लिए कोई भी निर्देश नहीं दिया है । इसलिए, क्या आप अपने पत्र दिनांक 15.9.2011 में से ‘निर्देशित’ शब्द को, और अपने हलफनामे के पैरा ३ में उसी प्रभाव के शब्दों को हटाना चाहेंगें?उत्तर: मैं अपने पत्र या अपने हलफनामे से उन शब्दों को हटाना नहीं चाहता।
प्रश्न: हम फिर से आपके सामने यह बात रखना चाहते हैं आयोग द्वारा अपने पत्र दिनांक 3.8.2011 में उपयोग की गई स्पष्ट भाषा को देखते हुए यह कहना गलत होगा कि आपको आयोग द्वारा एक हलफनामा दायर करने के लिए निर्देशित किया गया था?उत्तर: मुझे ये समझ में आया कि आयोग सुश्री मल्लिका साराभाई PIL के बारे में सूचना जानना चाहता था, और मैंने इसे एक अनुदेश के रूप में ले लिया, जिसका मेरे द्वारा पालन किया जाना था । मेरे विचार में, मेरे आठवें हलफनामे में प्रासंगिक मामले का गुजरात सरकार द्वारा माननीय आयोग के लिए तय किए गए जांच के दायरे के साथ सीधा संबंध है।