बुलेट ट्रेन – एक शहंशाह का सफ़ेद हाथी

क्या बुलेट ट्रेन परियोजना आर्थिक रूप से व्यवहार्य है, या क्या यह केवल एक लापरवाह, घमंडी और झक्की शाषक की ज़िद का महंगा सफ़ेद हाथी है?

2005 में, उन्होंने जोर शोर से घोषणा की कि गैस क्षेत्र में उनका निवेश दो साल के समय में भारत को ऊर्जा में आत्मनिर्भर बना देगा। बारह साल बाद, 20,000 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद, हमारे पास दिखाने के लिए कोई गैस नहीं है। [1]

2007 में, उन्होनें बेहद धूमधाम के साथ,अहमदाबाद के पास 17 गगनचुम्बी इमारतों वाले गिफ्ट सिटी के साथ 17 स्काई की घोषणा कर डाली जिसमें एक 80 मंजिला इमारत भी शामिल थी, इसके माध्यम से गुजरात न्यू यॉर्क और कैलिफोर्निया का संयोजन बनने वाला था, और करीब 5 लाख लोगों को रोजगार मिलने वाला था। [2] यह अब तक हासिल हो जाना चाहिए था, लेकिन एक वीराने के बीच में केवल दो लगभग खाली टावर खड़े हैं. 

2011 में, उन्होंने गुजरात में बड़े पैमाने पर $450 बिलियन (20.83 लाख करोड़ रुपये) के निवेश की घोषणा कर डाली थी, जिनसे 52 लाख नौकरियों के पैदा होने का वादा किया था। ऐसा कुछ नहीं हुआ. 

पिछले साल उन्होंने काले धन, नकली मुद्रा और भ्रष्टाचार से मुक्त, हमारे सपनों का भारत बनाने के लिए 50 दिन मांगे थे।

अब, उन्होंने 2022 तक आपको 110,000 करोड़ रुपये की बुलेट ट्रेन देने का वादा किया है।

इतिहास

दिसंबर 200 9 में रेल मंत्रालय ने [3] भारत में निम्नलिखित 6 हाई स्पीड रेल कॉरिडोरों की कल्पना की:

  1. दिल्ली-चंडीगढ़-अमृतसर;
  2. पुणे-मुंबई-अहमदाबाद;
  3. हैदराबाद-विजयवाड़ा-चेन्नई;
  4. हावड़ा-हल्दिया;
  5. चेन्नई-बैंगलोर-कोयम्बटूर-एर्नाकुलम;
  6. दिल्ली-आगरा-लखनऊ-वाराणसी-पटना

सितंबर 2013 में नई दिल्ली में भारत और जापान ने मुंबई-अहमदाबाद मार्ग का संयुक्त व्यवहार्यता अध्ययन (feasibility study) करने के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। संयुक्त अध्ययन का उद्देश्य 300-350 किमी/घंटे  की गति पर चलने वाली प्रणाली की व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करना था,  अध्ययन 18 महीनों के भीतर, अर्थात् जुलाई 2015 तक, पूरा किया जाना था।

वास्तव में इस व्यवहार्यता अध्ययन का पूरा होने से पहले, मोदी और उनके तत्कालीन रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने पहले से ही इस परियोजना के बारे में बात करना शुरू कर दिया था, जैसे कि यह पहले से ही सही और प्रैक्टिकल साबित हो चुकी हो। जुलाई 2014 में संसद में नई सरकार का पहला रेल बजट पेश करते हुए रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने घोषणा की कि भारत की पहली बुलेट ट्रेन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में चलाई जाएगी। उस समय, उन्होंने उल्लेख किया था कि इसके लिए 60,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। [4]

21 जुलाई 2015 को, जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी ने रेलवे मंत्री को मुंबई-अहमदाबाद मार्ग पर प्रस्तावित उच्च गति रेल प्रणाली के व्यवहार्यता अध्ययन पर अंतिम रिपोर्ट सौंपी और अनुमान लगाया कि इस महत्वाकांक्षी परियोजनापर 98,805 करोड़ रुपये खर्च होंगे। [5][6]

लाइन की वित्तीय व्यवहार्यता के अध्ययन के बाद, अंतिम रिपोर्ट बताती है कि मुंबई और अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन का किराया राजधानी एक्सप्रेस के प्रथम एसी श्रेणी के किराये से कहीं ज्यादा, लगभग डेढ़ गुना हो सकता है, और यह रु 2,800 होगा।

यह अनुमान लगाया गया कि 2023 तक लगभग 40,000 यात्रियों को इस सेवा का लाभ उठाने की उम्मीद है औरतभी यह वित्तीय रूप से एक व्यवहार्य सेवा होगी।

परियोजना के लिए निवेश पर 4 प्रतिशत की मुनाफा दर (आरओआर) और 12 प्रतिशत के एक आर्थिक आरओआर का अनुमान लगाया गया था।

दिसंबर 2015 में, जापानी प्रधान मंत्री शिंजो अबे द्वारा भारत की महत्वपूर्ण यात्रा के दौरान, जिसमें वाराणसी के प्रधान मंत्री मोदी के निर्वाचन क्षेत्र में गंगा आरती को देखना शामिल था, इस बुलेट ट्रेन के लिए भारत और जापान के बीच समझौता हुआ था।

जापान उस वर्ष पहले इंडोनेशिया में चीनी प्रस्ताव से हारने के बाद, एक उच्च गति वाले रेल सौदे को जीतने में असफल रहा था, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि इस सौदे को जीतने के लिए प्रधानमंत्री शिंजो अबे गंगा आरती को देखने के लिए तैयार थे। लेकिन इसमें हमारा क्या फायदा है?

लागत

लेकिन, हम तो 0.1% ब्याज पर एक नि:शुल्क  ऋण प्राप्त कर रहे हैं!

मोदी द्वारा भारत के लोगों को पहला झूठ तो ये बोल रहें हैं कि यह हमारे लिए महंगा नहीं है क्योंकि हमारे मित्र जापान ने हमें 0.1% ब्याज पर “मुफ्त” ऋण देकर हमपर एक बहुत बड़ा एहसान कर दिया है। उद्धरण [7]

मोदी ने कहा कि प्रभावी रूप से परियोजना की लागत “मुफ्त” होगी। “अगर कोई आपको ऋण लेने के लिए कहता है और इसे 10 या 20 में नहीं, बल्कि 50 वर्षों में लौटाने को कहता है, क्या आप इस पर विश्वास करेंगे? भारत को ऐसा दोस्त (जापान) मिल गया है जिसने 0.1% ब्याज पर 88,000 करोड़ रुपये का ऋण देने का वादा किया है। “

अब, जापानी येन ऋण में ब्याज दरों के इतिहास पर एक सरल नज़र आपको बता देगी कि वे पिछले 10 वर्षों में शून्य के पास और कभी-कभी इसके नीचे भी रहे हैं। भारत को अभी भी हर साल 1,700 करोड़ रुपये ब्याज का भुगतान करना होगा।

साधारण शब्दों में, किसी को भी , जिसकी क्रेडिट रेटिंग ठीक ठाक हो, जापानी येन में करीब शून्य ब्याज दर पर उधार मिल सकता है। यह तो फिर भी जापानी सरकार द्वारा गारंटी वाला एक ऋण है, इसलिए इस बात पर किसी के द्वारा डंका बजाना बिलकुल वैसे ही है, जैसे कि मोदी आपके लिए 76 रुपये प्रति लीटर में पेट्रोल खरीदने में कामयाब रहे, जिस कीमत पर वैसे भी हर कोई खरीद रहा है, और आप मूर्खों की तरह इसका जश्न मनाने लगे।

विदेशी मुद्रा विनिमय का जोखिम

यह परियोजना अपना सभी राजस्व से भारतीय रुपयों में कमाएगी, और इसे अगले 50 वर्षों तक जापानी येन में अपना ऋण वापस चुकाना होगा। इस बात को ज़रा समझें की, इतनी लम्बी अवधी में, येन की तुलना में भारतीय रुपया कभी कमजोर हो सकता है, या कभी मजबूत हो सकता है. यदि रुपए में देखा जाए, तो यह ऋण ब्याज मुक्त नहीं है

साधारण शब्दों में,मान लीजिये की 2007 में, जब एक रुपया 2.5 येन के बराबर था, आप 10 साल के लिए 0% ब्याज पर 250 येन (उस समय 100 रुपए) उधार लेते हैं। 0% ब्याज के चलते आपको आज भी 250 येन का ही भुगतान करना है। पर आपको ये दिखेगा कि अब आपको 250 येन खरीदने के लिए अब 145 रुपये की जरूरत है, क्योंकि विनिमय दर अब 1.7 हो गई है!

यानी की पिछले 10 वर्षों में,हालंकि आपको येन में 0% ब्याज पर ऋण मिला है, विदेशी विनिमय दर में बदलाव के कारण, आपने रूपये के हिसाब से वास्तव में 10 वर्षों के बाद 45% ब्याज का भुगतान किया है। यह लगभग 3.8% प्रति वर्ष है ।

डरावना लगता है? मनगढंत परिदृश्य होगा? दरअसल, नीचे दिए गए चार्ट को देखें, मैंने अपने उदाहरण के लिए 2007 और 2017 से असली रुपया-येन विदेशी मुद्रा दर का इस्तेमाल किया है।

बेशक, रुपया मजबूत भी हो सकता हैं, कोई भी नहीं जानता। जिन विदेशी कंपनियों का इस प्रकार का विदेशी मुद्रा एक्सपोजर होता है, वे अनिश्चितता नहीं चाहते हैं, इसलिए विदेशी मुद्रा फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स , या क्रॉस करेंसी स्वैप जैसे वित्तीय साधनों का इस्तेमाल करते हैं, जो कि हमारे रेलवे को भी इस विनिमय दर के बदलने के जोखिम से बचाव (रिस्क हेजिंग) के लिए करना पड़ेगा।  यह वित्तीय साधन बड़े बैंकों द्वारा बेचे जाते हैं। बड़े बैंक इन्हें दान के लिए नहीं बेचते हैं, बल्कि इनपर लाभ कमाते हैं। वे हमारे रेलवे से पर्याप्तवसूली करेंगे ताकि उन्हें खुद आगे चलकर इस सौदे में कोई खतरा न हो।संक्षेप में, हाँ, हम खुद को विदेशी मुद्रा के जोखिम से बचा सकते हैं, लेकिन यह एक कीमत पर आ जाएगा, जो कि 0% नहीं होगा। इसे आप एक बीमा की तरह देख सकते हैं, जो आपको किसी बुरी स्थिति में मदद करेगा, पर आपको मुफ्त में नहीं मिलेगा, आपको कुछ न कुछ प्रीमियम भरना ही पड़ेगा। 

आज के भारत के वित्तीय प्रेस में मैंने किसी को भी, कहीं भी, इस विदेशी मुद्रा जोखिम की बात करते हुए नहीं देखा है, और न ही रिस्क हेजिंग की लागत के बारे में कहीं कोई चर्चा है। यदि यह विदेशी मुद्रा जोखिम हेजिंग की लागत लगभग 4% है, तो यह व्यवहार्यता अध्ययन के हिसाब से भी एक आर्थिक रूप से व्यावहारिक परियोजना नहीं रह जाती है।

लाभ

लाभ के लिए न्यूनतम आवश्यक यात्री संख्या

व्यवहार्यता अध्ययन ने स्वयं सुझाव दिया था कि आर्थिक रूप से व्यवहार्य होने के लिए प्रतिदिन 3000 रुपये के किराए पर 40,000 यात्रियों की जरूरत है। आईआईएम की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर रेलवे ने ऑपरेशन के 15 साल बाद प्रत्येक व्यक्ति को 300 किलोमीटर की दूरी पर 1500 रूपये टिकट का टिकट तय किया है, तो उसे समय पर ऋण चुकाने के लिए प्रति दिन 88,000 से 110,000 यात्रियों को भरना होगा। [8] इसके लिए रोज़ाना लगभग 100 ट्रेनों की आवश्यकता होगी, हर 15 मिनट में, (या प्रत्येक दिशा से हर एक आधा घंटे)। ध्यान दें कि बुलेट ट्रेन की क्षमता मात्रा 750 यात्रियों की है, हालांकि यह संभवतः लगभग 1000 तक बढ़ाया जा सकता है

अब, इस तथ्य की अनदेखी करते हुए कि इनमें से कुछ लोग 1 घंटे की उड़ान ले सकते हैं, जिसे यदि पहले से बुक किया जाए तो 1,700 से 2,700 रुपए के बीच खरीदा जा सकता है, पहले हमें यह तय करने की कोशिश करनी चाहिए कि यहां क्या इतनी मांग (डिमांड) हो सकती है?

किसी भी दिन 1.08 करोड़ लोग भारतीय रेलगाड़ियों पर देश भर में यात्रा करते हैं, जो देश की आबादी का लगभग 0.9% है! (स्रोत: रेलवे रेलवे रेलवे बोर्ड भारतीय रेलवे वर्ष पुस्तक 2012-13)। ग्रेटर मुंबई क्षेत्र की कुल जनसंख्या 1.8 करोड़ है, और अहमदाबाद की 60 लाख। कुछ और शहरों को भी जोड़ें, तो हम कुल 2.5 करोड़ की आबादी वाले इलाके को देख रहे हैं। हमारे राष्ट्रीय औसत के हिसाब से इन शहरों से करीब 1% या, 2.5 लाख लोग हर दिन लंबी दूरी की ट्रेनों में यात्रा कर रहे हैं। आईआईएम अध्ययन की आवश्यकता होगी कि मुम्बई के सभी लंबी दूरी के यात्री में से 40% हर दिन अहमदाबाद जाएँ, और वो बुलेट ट्रेन लेकर जाएँ। अब, बस अगली बार आपके पास से गुजरने वाली किसी भी लंबी दूरी की ट्रेन को देखें। विभिन्नश्रेणियों के कितने डिब्बे हैं, इसकी जांच करें। हमारी आबादी का एक छोटा अंश मौजूदा वातानुकूलित वर्गों का उपयोग करता है, और हम उम्मीद कर रहे हैं कि इतने सारे लोग रोज़ाना बुलेट ट्रेन के किराया पर खर्च करने के लिए समर्थ होंगे?

आइए हम एक और हाई स्पीड रेल लिंक, लंदन-पेरिस यूरोस्टार लिंक, पर नजर डालें जो लगभग 2 करोड़ की संयुक्त आबादी वाले यूरोप के दो बड़े शहरों को जोड़ता है, ये ऐसे शहर हैं, जहां प्रति व्यक्ति आय है भारत से लगभग 20 गुना  अधिक है। पेरिस और लंदन, दोनों ही शहरों में, हवाई अड्डे शहर के केंद्र से बहुत दूर हैं, और यूरोस्टार ट्रेन टर्मिनल बिलकुल शहर के बीचोंबीच हैं। फिर भी लंदन से पेरिस तक प्रत्येक दिशा में केवल 18 ट्रेनें हैं । मुंबई में, बांद्रा कुर्ला परिसर में प्रस्तावित बुलेट ट्रेन टर्मिनल, पास ही सांता क्रूज़ में मौजूद हवाई अड्डे के घरेलू टर्मिनल से यात्रा पर कोई ख़ास फायदा नहीं पेश करेगा।

इसी जापानी तकनीक का उपयोग करते हुए, ताइवान में 10 साल पहले एक बुलेट ट्रेन नेटवर्क का उद्घाटन हुआ था. ये एक और देश है जो कि हमारे मुकाबले कहीं ज्यादा समृद्ध है, पर ये बुलेट ट्रैन कंपनी दिवालियापन के कगार पर थी।इसकी 60% से ज्यादा सीटें कभी नहीं भरीं, और अंतत: करदाताओं को अपने खर्चे पर कंपनी को दिवालियापन से बचाना पड़ा । [9]

लेकिन, यह “सॉफ्ट लोन” विशेष रूप से इस परियोजना के लिए है

ऐसी कई बड़ी और लाभकारी चीजें हैं जिनपर हम 110,000 करोड़ रुपये खर्च कर सकते थे। हमारे बैंक नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स के तहत संघर्ष कर रहे हैं, जिनकी वजह से नए निवेश और कॉरपोरेट उधार ठप्प पड़े हैं, हमारा कृषि क्षेत्र दो सूखे, और फिर ऊपर से नोटबंदी, के प्रभाव से संघर्ष कर रहा है. मुंबई औरअहमबाद के चंद अमीरों के एक छोटे हिस्से के बजाय, जो पहले से ही भारत के अपेक्षाकृत समृद्ध राज्यों में रहते हैं, हम सौर ऊर्जा जैसे चीजों पर एक भारी राशि का निवेश कर सकते थे, जिनसे सभी भारतीयों के लिए लम्बे समय तक फायदा पहुँचेगा। 

यहां तक ​​कि रेलवे के लिए भी, पूरे नेटवर्क में पटरियों और सिग्नलिंग सिस्टम को अपग्रेड करने, सभी रोलिंग स्टॉक को सुधारने, सभी क्रॉसिंग को ठीक करने, और समूचे नेटवर्क पर सुरक्षा में सुधार करने पर खर्च हो सकता था, जिसमे हर साल 15,000 मौतें हो जाती है,जैसा की काकोडकर समिति ने 2012 में सिफारिश की थी। [10]

नीचे दिए गए चार्ट में इस विशाल पूंजी व्यय के साथ, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी कई वस्तुओं पर हमारे नियमित खर्च की तुलना कर सकते हैं। [11]


मैंने देखा है कि बुलेट ट्रेन के कई समर्थकों को जब भी इस तरह के डेटा दिखाया जाता है, तो वो ये जवाब देते हैं कि जापान से “सॉफ्ट लोन” सिर्फ इस परियोजना के लिए है, और इनमें से किसी अन्य चीज के लिए नहीं।

यह बात दरअसल काफी हद तक सही भी है।

एक कार कंपनी आपको केवल अपनी कार खरीदने के लिए ही एक ऋण प्रदान करती है, न कि उस फंड का उपयोग आपके बच्चों की शिक्षा पर खर्च करने के लिए। हम जापान से उसकी बुलेट ट्रेन खरीदने के लिए उधार ले रहे हैं। पैसा अंततः जापान में नौकरियाँ पैदा करेगा, और उसके निर्यात को बढ़ावा देगा, जैसे कार लोन, कार कंपनी की बिक्री में मदद करती है।

पूछने लायक सवाल यह है, अगर आपको एक बड़ा होम लोन चुकाना है, आपकी बहन और भाई की शिक्षा और विवाह के लिए आपके पास पर्याप्त पैसा नहीं है, आपके दादाजी के मेडिकल बिल बढ़ रहे हैं, लेकिन आपके पिता पास में ऑडी या बीएमडब्लू शोरूम जाते हैं और एक 2 करोड़ की कार सिर्फ इसलिए खरीद लेते हैं क्योंकि इसके लिए लोन 15 साल के बाद भुगतान करने के लिए 0.1% सस्ती दर पर मिल रहा है, और वह आपको यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि कार के विक्रेता ने ये लोन देकर आप सभी पर एक “एहसान” किया है, तो  क्या आप इसे अक्लमंदी मानेंगे? विशेष रूप से, जब आप यह महसूस करते हैं कि आपके पिताजी का असली मकसद पड़ोसी “शर्मा अंकल” के सामने ढिंढोरा पीटना और दिखावा करने का था?

सारांश

अगर साधन सीमित हैं और भारत की रेल सेवाओं के लिए सर्वाधिक फायदे वाला कदम चुनना हो, तो वह 160-200 किमी प्रति घंटे की सेमी-हाई स्पीड ट्रेनों का चयन करेगा जो उपग्रह शहरों के साथ मेट्रो को जोड़ता है, जिससे जल्दी से जल्दी यात्रा संभव हो सके। यदि कोई दिल्ली और आगरा, चंडीगढ़ या जयपुर के बीच की दूरी को लगभग एक घंटे में तय कर सकता है, तो वहां वहां रहने और राजधानी में काम करने का विकल्प व्यावहारिक होगा। ऐसी सेवाएं महानगरों में भीड़भाड़ को खत्म कर सकती हैं, रहने के खर्च कम कर सकती हैं, जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकती है और आर्थिक विकास को आगे बढ़ा सकती है।

जब पश्चिमी माल ढुलाई कॉरिडोर का संचालन चालू हो गया था, तो जापानियों ने खुद ही दिल्ली-मुंबई रेलवे मार्ग के लिए अर्द्ध-उच्च गति ट्रेनों की सिफारिश की थी। एमईटीआई के अध्ययन में पहले उल्लेख किया गया था कि बारह घंटे की यात्रा अवधि के साथ अर्द्ध-उच्च गति लाइन की लागत का अनुमान 6.85 अरब डॉलर (45,900 करोड़ रुपये) होगी। यह 140 किमी प्रति घंटे की औसत गति से दस घंटे की यात्रा मार्ग के लिए 16.34 अरब डॉलर (109,500 करोड़ रुपये) तक पहुंच जाएगा। राजधानी से सोलह घंटे की यात्रा की 87 किलोमीटर प्रति घंटा की मौजूदा औसत गति से दो मेट्रो के बीच रात भर की यात्रा संभव हो सकती है।

इसके बजाय, हम अब उस रास्ते के एक तिहाई पर बुलेट ट्रैन के लिए उतनी ही राशि खर्च कर रहे हैं।

मीडिया में चियरलीडर्स, जो आपको बता रहे हैं कि यह 0.1% “सॉफ्ट-लोन” कितना महान है, “मेक इन इंडिया” जैसे सामान्य जुमलों का उपयोग कर इस निर्णय का बचाव कर रहे है, जबकि वास्तव में इस परियोजना में प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण नहीं होगा! [12]

यह भी स्पष्ट नहीं है कि इस तरह की एक बड़ी परियोजना के लिए कोई बिडिंग या टेंडर की प्रक्रिया इस्तेमाल हुई है या नहीं। हमारी वर्तमान अनुमानित लागत 3.2 करोड़ डॉलर प्रति किमी है, तुलना करने के लिए, चीन ने अपने उच्च गति नेटवर्क को 1.7 से 2.1 करोड़ डॉलर प्रति किमी और यूरोप में 2.5-3.9 करोड़ डॉलर प्रति किमी की लागत पर बनाया।जापान में शिंकानसेन ट्रेनों में एक घंटे की यात्रा की पर लगभग $100 का टिकट लगता है। [13] और ध्यान दीजिए, इन उच्च गति वाली गाड़ियों में जापान में ही बड़ी मुश्किल से चलाया जा रहा है; वे कोई मुनाफ़ा नहीं कमा पा रहीं हैं

जापानी, जिनकी प्रति व्यक्ति आय $50,000 है, ऐसी यात्राओं का लुत्फ़ ले सकते हैं; भारत में कितने लोग, जहां प्रति व्यक्ति आय $1,500 डॉलर है, इसे बर्दाश्त कर सकता है?

टिकट की कीमत को सही ठहराने के लिए यात्रियों की महत्वाकांक्षी संख्या, विदेशी मुद्रा दर के जोखिम के बारे में कोई स्पष्टता नहीं, 0.1% ऋण पर अनावश्यक डंका बजाना, और ये पूरा मीडिया सर्कस देखकर शक होता है, क्या हम एक सफेद हाथी का जन्म देख रहे हैं?

संदर्भ

1.
“गुजरात का गैस खोज एक जैकपॉट है ’. 2017. rediff.com. http://www.rediff.com/news/2005/jul/01gas.htm. Accessed September 15.
2.
मोदी का “गिफ्ट” मुंबई को चुनौती दे सकता है. 2007. Rediff. June 27. [Source]
3.
भारतीय रेलवे – विज़न 2020. 2009. Indian Railways . [Source]
4.
Ghosh, Deepshikha. 2014. India’s First Bullet Train To Run In PM Modi’s Gujarat. NDTV.com. July 8. [Source]
5.
महंगा सपना: मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना को 1 लाख करोड़ रुपये का खर्च. 2015. Firstpost. July 21. [Source]
6.
Feasibility Study. 2016. JICA . July. [Source]
7.
Modi mocks Bullet train critics in style. 2017. The Financial Express. September 14. [Source]
8.
बुलेट ट्रेन को वित्तीय रूप से व्यवहार्य होने के लिए 100 दैनिक यात्राओं की आवश्यकता होगी: अध्ययन. 2016. http://www.hindustantimes.com/. April 19. [Source]
9.
Taxpayer bailout: Taiwan to rescue troubled bullet-train operator- Nikkei Asian Review. 2017. Nikkei Asian Review. https://asia.nikkei.com/Politics-Economy/Policy-Politics/Taiwan-to-rescue-troubled-bullet-train-operator. Accessed September 15.
10.
Protecting passengers on India’s next-gen network. 2017. Railway Technology. http://www.railway-technology.com/features/featureprotecting-passengers-on-indias-next-gen-network-4532155/. Accessed September 15.
11.
Daniyal, Shoaib. 2015. एक चार्ट जो दिखाता है कि मोदी के मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन लाइन में कितनी फिजूलखर्ची  है।. Scroll.in. December 13. [Source]
12.
Shinzo Abe in Gujarat: Will bullet train be a win-win for Japan and a no-win for India? 2017. Firstpost. September 14. [Source]
13.
चीन में उच्च गति रेल की लागत दूसरे देशों की तुलना में एक तिहाई कम है . 2017. World Bank. http://www.worldbank.org/en/news/press-release/2014/07/10/cost-of-high-speed-rail-in-china-one-third-lower-than-in-other-countries. Accessed September 15.
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