लाशों का विहिप को सौंपना
Contents
लाशें विहिप को सौंपने के महत्वपूर्ण पहलू पर एसआईटी के परस्पर विरोधी निष्कर्ष, जांच की घटिया दर्जे को दर्शाते हैं।इसके अलावा, निष्कर्ष यह है कोई गलत नहीं किया गया था, फिर भी वह एक निचले स्तर के अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करती है, जिसके पास निर्णय लेने की कोई शक्ति ही नहीं थी।
एक आरोप यह था कि कारसेवको की लाशों को अवैध रूप से विहिप नेता जयदीप पटेल को सौंप दिया गया था ।
एसआईटी ने मोदी से इसके बारे में पूछा ।
Q.15 क्या आप श्री जयदीप पटेल, जो उस समय विहिप के महासचिव हे, को जानते हैं ? और वो आपसे गोधरा में मिले थे और उन्होंने आपसे ये अनुरोध किया की उन्हें लाशों के अहमदाबाद तक जाने दिया जाए ?
मोदी: मैं उस समय विहिप के महासचिव जयदीप पटेल को जानता हूँ। मुझे याद नहीं कि मैं उसे गोधरा में मिला था की नहीं।
एक बार जब लाशों को अहमदाबाद भेजने का निर्णय ले लिया गया था, तो उसके तौर तारीके और साधन का प्रबंध करना जिला प्रशासन की जिम्मेदारी थी । लाशें कब और कैसे अहमदाबाद तक पहुँची, इसका विवरण मुझे नहीं पता।
हालांकि, पूरे समय तक लाशें जिला प्रशासन, पुलिस अधिकारियों और अस्पताल के अधिकारियों के ही पास थीं ।
शब्द बहुत सावधानी से चुने गए हैं, और “मुझे याद नहीं” कहा गया है। ठीक है. लेकिन, कोई जिरह और जांच क्यों नहीं ? मोदी और जयदीप पटेल दोनों डीएम कार्यालय में एक बैठक में उपस्थित थे, और साथ ही एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे थे।
मोदी और जयदीप पटेल
आखिरकार, जैसे ही मोदी को गोधरा की घटना के बारे में पता चला था, इसके बाद सब के पहले, मोदी के कार्यालय से जयदीप पटेल को फ़ोन किया गया था। एक और बात यह भी है कि एसआईटी श्री मोदी की सचिव, जिसका फोन यह कॉल करने की लिए इस्तेमाल हुआ था, की जांच ही नहीं की ।
Q7 आपको 27.02.2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के पर एक रेलवे कोच के जलने की घटना के बारे में कब और कैसे पता चला था?
मोदी: 27-2-2002 को लगभग 9:00 पर बजे, गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के एक रेलवे कोच के जलने के बारे में जानकारी, मुझे गृह मंत्रालय के तत्कालीन ACS श्री अशोक नारायण से प्राप्त हुई थी।
Q.8 आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी और आपने इस घटना के बारे में क्या कदम उठाए थे?
मोदी: मैंने तत्कालीन गृह राज्यमंत्री श्री गोर्धन जदाफिया,गृह मंत्रालय के तत्कालीन ACS श्री अशोक नारायण और गृह और पुलिस विभाग के अन्य अधिकारियों के साथ विचार विमर्श आयोजित किया और उन्हें तथ्य एकत्रित करने के लिए कहा क्योंकि मुद्दा विधानसभा में उठाया जाने वाला था । मैंने निर्देश दिया था कि आवश्यक कदम उठाए ताकि अन्य यात्रियों को देरी ना हो, जिससे तनाव बढ़ सकता था । गोधरा सांप्रदायिक तौर पर एक संवेदनशील जगह थी और मैंने निर्देश दिया कि किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए कर्फ्यू आदि आवश्यक कदम तुरंत लिया जाना चाहिए, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और अतिरिक्त बल, यदि आवश्यक हो तो बिना किसी देरी जगह पहुँचना चाहिए।
फोन कॉल रिकॉर्ड ये दिखाते हैं कि श्री मोदी गोधरा हादसे की जानकारी मिलने के तुरंत बाद श्री जयदीप पटेल के साथ निकट संपर्क में थे, गृह विभाग के अधिकारियों और मंत्रियों से तो वो 10:30 पर मिले थे. मुख्यमंत्री के पीए के फ़ोन से जयदीप पटेल को 09:39 पर और पुन: 09:41 पर 2 कॉल किए गए हैं ।
गोधरा में
मोदी और पटेल दोनों डीएम कार्यालय में एक बैठक में उपस्थित थे। (पृष्ठ 20 2010 एसआईटी रिपोर्ट)
जयंती रवि ने एसआईटी को बताया है कि कलेक्टर कार्यालय में आयोजित बैठक में, एक विहिप कार्यकर्ता श्री जयदीप पटेल, भी उपस्थित थे।
क्या यह असाधारण और असामान्य नहीं है, कि एसआईटी ने एक गैर सरकारी व्यक्ति, जो दंगे में एक प्रमुख अभियुक्त भी है, की इस बैठक में उपस्थिति के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं माँगा? वहाँ जयदीप पटेल क्या कर रहा था? उसको उच्चतम स्तर पर लिए गए निर्णयों की जानकारी क्यों दी जा रही थी?
स्थानीय मामलतदार, श्री नलवया ने जयदीप पटेल को संबोधित एक पत्र तैयार किया जिसमे बड़े विस्तार से लाशों के विवरण थे, जो कि यह साफ़ दर्शाता है कि लाशों को विहिप की अमानत में सौंप दिया गया था।
वास्तव में, एसआईटी खुद ही कहते हैं, पृष्ठ 464, (2012 संस्करण, अंतिम रिपोर्ट)
विहिप के श्री हसमुख टी. पटेल ने लाशों की प्राप्ति को स्वीकार किया था।
सोला सिविल अस्पताल, अहमदाबाद में
p467 (अंतिम बंद रिपोर्ट 2012)
“सोला सिविल अस्पताल में श्री जयदीप पटेल ने अस्पताल अधिकारियों को पत्र सौंपा और स्थानीय पुलिस के साथ ही अस्पताल के प्राधिकारियों ने लाशों का प्रभार ले लिया”
यानी कि, विहिप ने स्वीकार किया की उसने लाशें प्राप्त कीं, और एसआईटी खुद कह रही है कि विहिप ने अस्पताल अधिकारियों को शवों के साथ पत्र सौंप दिया।
एसआईटी के निष्कर्ष
फिर भी, अंतरिम रिपोर्ट में एसआईटी ने कहा कि “लाशों के जयदीप पटेल को सौंप दिये जाने का आरोप भी स्थापित नहीं होता है”, और वह “मात्र लाशों के साथ यात्रा कर रहे थे” (पृष्ठ 23 2010 एसआईटी रिपोर्ट)
एसआईटी: कोई अपराध नहीं, और फिर भी सजा?
हालांकि एसआईटी के अनुसार लाशों को अवैध रूप से विहिप को सौंपने का कदम साबित नहीं हुआ है, फिर भी उसी एसआईटी ने इस मामलतदार के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश भी है। (p 467)
मामलतदार श्री एमएल नलवया ने एक गैर जिम्मेदाराना तरीके से लाशें को श्री जयदीप पटेल के नाम को सौंपे जाने के बारे में एक पत्र जारी करके का काम किया था, ये लाशें सकरार की संपत्ति थे, और इसलिए, गुजरात की सरकार उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही आरंभ करने के लिए अनुरोध किया जा रहा है।
जब खुद एसआईटी के अनुसार जयदीप पटेल मात्र लाशों के साथ यात्रा ही कर रहे थे, तो फिर मामलतदार के खिलाफ कार्रवाई की क्या जरूरत है?
एक तरफ तो एसआईटी खुद ही यह मानती है कि लाशों को अहमदाबाद भेजने का निर्णय जयंती रवि, जयदीप पटेल, स्वास्थ्य मंत्री अशोक भट्ट, नागरिक उड्डयन मंत्री प्रभातसिंह चौहान, गोर्धन जदाफिया और मोदी के बीच एक बंद दरवाज़ा बैठक के बाद लिया गया था। लेकिन अजीबोगरीब बात ये है कि, जब यह सवाल उठता है कि फैसला किसने किया, तो एसआईटी मामलतदार एमएल नलवया, जो बैठक में मौजूद भी नहीं था, को जिम्मेदार ठहराती है.
आखिर क्यों एक मामलतदार इतनी सावधानी और विस्तार से लाशों और 4 ट्रक की एक सूची तैयार करके ये रिकॉर्ड कर रहा है कि प्रत्येक लाश कौन से ट्रक में जा रही है ? क्या यह विश्वसनीय है कि एक जूनियर अधिकारी एक डीएम और कई मंत्रियों की उपस्थिति में, लाशों को विहिप को हस्तांतरित करने जैसा एक बड़ा फैसला ले सकता है? यहां तक कि अगर हम मान भी लें कि वह दोषी है, और उसने अपने ही मन से लाशों को विहिप को सौंपने का फैसला किया था, तो वो इसको छुपाने के बजाय खुद ही एक पुख्ता दस्तावेजी सबूत क्यों पैदा करेगा?
खुद न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी – अदालत की मदद करने वाला विशेषज्ञ) ने भी 2010 की अंतरिम रिपोर्ट पर यही टिपण्णी की थी। इन आपत्तियों को 2012 की अंतिम समापन रिपोर्ट में अभी भी घ्यान में नहीं लिया गया है।
न्यायमित्र की टिपण्णी :
एक और पहलू यह तथ्य है कि – विहिप महासचिव जयदीप पटेल और श्री मोदी 27-02-2002 को गोधरा में थे। जयदीप पटेल का कथन कि उन्होंने गोधरा में नरेंद्र मोदी से मुलाकात नहीं की, इसपर विश्वास नहीं होता। इसपर जांच होनी चाहिए क्योंकि मामलतदार लाशों को एक गैर-सरकारी व्यक्ति यानी जयदीप पटेल को नहीं सौंप सकता है, जब तक और तभी जब, कोई बहुत ऊपर के किसी व्यक्ति ने उसे ऐसा करने के लिए कहा।
शवों को अहमदाबाद ले जाने के लिए निर्णय
मोदी ने एसआईटी को कहा था कि यह एक सामूहिक निर्णय था ।
Q.13. लाशों को अहमदाबाद भेजने का निर्णय किसने लिया और किस आधार पर लिया?
मोदी: कलेक्टर कार्यालय में आयोजित बैठक में, वहा मौजूद सभी लोगों ने साथ परामर्श करके और मिलकर एक सामूहिक निर्णय लिया था कि घायलों और लाशों को अहमदाबाद देना चाहिए। मैं चाहता था कि तनाव नहीं बढे, इसलिए मैंने निर्देश दिया की लाशों को अहमदाबाद के बाहरी इलाके में स्थित सोला सिविल अस्पताल रखा जाना चाहिए। हमें पता चला था कि ज्यादातर पीड़ित अहमदाबाद और अहमदाबाद से परे अन्य स्थानों के थे और गोधरा शहर में कर्फ्यू था, इसलिए उनके रिश्तेदारों के लिए गोधरा उनकी पहचान और मृत शरीर का दावा करने के लिए आने की जरूरत नहीं पड़े, यह सोचकर ये निर्णय लिया गया था।
कुछ अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का भी साक्षात्कार पर कहना है कि लाशों को लाने का यह निर्णय उच्चतम स्तर पर लिया गया था।
“… मैंने लाशों को अहमदाबाद लाने का निर्णय नहीं लिया था। चूंकि मुझे विश्वास था कि निर्णय शीर्ष स्तर पर लिया गया है, मेरे लिए इस निर्णय में हस्तक्षेप करना आवश्यक नहीं था.. “
नानावती आयोग के द्वारा पूछ ताछ के दौरान गृह विभाग के ACS श्री अशोक नारायण ने भी पुष्टि की थी कि लाशों को अहमदाबाद शहर में लाने के उस निर्णय को उच्च स्तर पर लिया गया था। इस उच्च स्तर में सिर्फ मुख्य सचिव, गृह राज्यमंत्री और मुख्य मंत्री ही श्री अशोक नारायण से ऊपर थे।[1]
इसके अलावा, चिंतित नागरिकों का ट्रिब्यूनल भी कहता है (CCT वॉल्यूम II, पृष्ठ 17)
4.4। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, स्वास्थ्य मंत्री श्री अशोक भट्ट और अन्य कैबिनेट सहयोगियों के साथ, गोधरा में उस दिन 2 बजे के आसपास आ गये थे । कलेक्टर के साथ बैठक के बाद, उन्होंने लाशों को अहमदाबाद ले जाने का फैसला किया। जिला प्रशासन की सलाह के खिलाफ, बुरी तरह से जले शव अहमदाबाद ले जाना, श्री मोदी का निर्णय था। शुरू में, मुख्यमंत्री और उनके सहयोगियों ने शव उसी ट्रेन में अहमदाबाद ले जाना चाहते थे । जिला प्रशासन ने कानून और व्यवस्था कारणों से उन्हें दृढ़ता से इस के खिलाफ सलाह दी, जिसके बाद लाशों को एक मोटर गाड़ी काफिले में सोला सिविल अस्पताल अहमदाबाद ले जाया गया ।
एक रिपोर्ट ने दावा किया यह CCT को डीएम जयंती रवि के बयान पर आधारित था। (हालांकि, मैं यह अभी तक सत्यापित करने में सक्षम नहीं हो पाया हूँ )
मृत शरीर को अहमदाबाद ले जाने का यह निर्णय, उन्हें विहिप को सौंपने के निर्णय से थोड़ा अलग है।
लेकिन यदि शव अहमदाबाद ले जाने के इस निर्णय को उच्चतम स्तर के अधिकारियों के द्वारा लिया गया था, तो फिर हम इसके साथ ही साथ इस तर्क पर कैसे विश्वास कर सकते हैं कि लाशों को विहिप को देने का निर्णय एक जूनियर मामलतदार द्वारा लिया गया था ?