जीएसटी बिल – विपक्ष में रहकर देशभक्ति

2009-2014 के दौरान एक बेहतर जीएसटी बिल का भाजपा ने बेवजह बहाने देकर विरोध किया।क्या

वास्तविक “देशभक्त” राष्ट्र के हित के बारे में केवल तभी सोचते हैं जब वो सत्ता में होते हैं?

प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली हर किसी को बता रहे हैं कि कैसे जीएसटी देश के लिए अच्छा है, और हो सकता है यह  हर साल जीडीपी विकास दर 2% जोड़ें।

  • जीएसटी पर काम वाजपेयी सरकार के अंतर्गत शुरू किया गया। इसका काफी श्रेय यशवंत सिन्हा को जाता है।
  • राज्य वित्त मंत्रियों के एक सशक्त समूह ने मिलकर मसौदा बनाया।कई अवसरों पर, इस समूह का नेतृत्व विपक्ष शासित राज्यों (भाजपा / सीपीआई) के वित्त मंत्रियों ने किया। तो, यह समूह का प्रारंभिक मसौदा, जो की “राज्यों के लिए बिना किसी राजस्व हानि” के उद्देश्य से बनाया गया था, के आने के बाद का विरोध, “सौदेबाजी” के रूप में देखा जाना चाहिए।
    • हम सबको इनका पता है -आम तौर पर, कुछ राज्य के नेताओं के लिए, यह कुछ सीबीआई जांच को रोकने के बारे में होते हैं, या अन्य कुछ राज्य हमेशा केंद्र से एक “विशेष पैकेज” की मांग करते रहते है।
  • जीएसटी बिल का विरोध करने के लिए भाजपा के द्वारा उस समय बताये गए कारण  थे कि यह “राज्यों की स्वायत्तता को कम करेगा” और यह “सरकारिया आयोग की रिपोर्ट” में निहित “संघीय ढांचे की भावना के खिलाफ” था।

सभी शक्तियों को केंद्र को सौंपने, और फिर उसीयह पैसे के लिए भीख माँगना, सरकारिया आयोग की रिपोर्ट की भावना के खिलाफ है, “मध्य प्रदेश वित्त मंत्री राघवजी ने नई दिल्ली में संवाददाताओं से कहा।

“यह पूरी तरह से बेकार है और राज्यों के हित के खिलाफ है। यह प्रावधान राज्यों की स्वायत्तता को कम करेगा। राज्यों के अधिकार में केंद्र दखल दे रहा है” उन्होंने कहा।

  • कथित तौर पर, (जैसी सूचना उस समय रिपोर्ट की गयी) वास्तविक कारणों  में से एक थाश्री अमित शाह के खिलाफ सीबीआई जांच ।इस से पहले गुजरात/श्री मोदी भी जीएसटी का समर्थन क्र रहे थे। डॉ मनमोहन सिंह ने खुद इस उल्लेख किया है, जो उनके लिए एक बहुत अस्वाभाविक बात थी।

“सात भाजपा-शासित राज्यों में से गुजरात GST के लिए शुरू में सहमत था, लेकिन जब सीबीआई ने फर्जी मुठभेड़ मामले को अपने हाथ पूर्व राज्य मंत्री अमित शाह तक फैलाये, तो मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्साह ठंडा पड़ गया था।”

  • जो भी वजह और कारण अब भाजपा के रुख में परिवर्तन का औचित्य साबित करने की कोशिश कर रहे हैं , इनका पहले बिल का विरोध करने के कारण के रूप में उल्लेख नहीं है। नकारात्मक सूची में शराब/पेट्रोलियम को जोड़ा जा रहा है, हो सकता है इसे पहले भी समायोजित किया जा सकता था, लेकिन भाजपा द्वारा मैंने पहले ऐसी कोई भी मांग को कहीं उठाए जाते हुए देखा ही नहीं है.
  • इसके अलावा खुद, नकारात्मक सूची में अभिक चीजों को जोड़ना, जैसा श्री जेटली ने कर डाला है, कोई आदर्श हल नहीं है। जीएसटी का फैलाओ जितना व्यापक होता, – राज्यों की सीमाओं पर ट्रकों को परेशान करने के लिए बहाना उतना ही कम रहता। जीएसटी में इनको रखते हुए एक कम कर की दर (17% की यूपीए लक्ष्य) भी प्राप्त की जा सकती थी, जो कि बाजार में मांग को बढ़ावा देती, और कुछ अनुमानों के अनुसार सालाना सकल घरेलू उत्पाद में 2% की वृद्धि जोड़ने में मदद करती। इनको जीएसटी से बाहर रखने के साथ, कर की दर बहुत अधिक हो सकता है, और शायद अब उतना सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़े।
  • इसके अलावा, 1% इंट्रा -स्टेट-लेवी राज्य की सीमाओं के पार माल की मुक्त आवाजाही – को जोड़ना एक प्रतिगामी कदम है, जोकि बिल का पूरा उद्देश्य हरा सकता है। द इकोनोमिस्ट पत्रिका में एक लेख “(गेम चेंजर या नेम चेंजर) खेल परिवर्तक या नाम परिवर्तक” ने इन्ही मुद्दों को उठायाथा । एक ब्लूमबर्ग लेख ने भी ऐसे मुद्दों को उठाया

लेकिन जितनी अधिक छूट देखते हैं,उतना अधिक जीएसटी उन्ही करों के जैसे लगता है जिन्हें बदलने के लिए ये लाया जा रहा है। इस मुद्दे पर श्री पोद्दार कहते हैं कि इस रूप में, है जीएसटी एक क्रांतिकारी खेल परिवर्तक के बजाए क्या महज एक नाम-परिवर्तक होगा  ?

  • तो, सारांश में, यूपीए की बिल यकीनन बेहतर था – अधिक वस्तुओं को कवर कर रहा था, कोई लेवी नहीं थी, कम कर की दर का लक्ष्य था । भाजपा इसका समर्थन यदि  2011 में किया होता, तो भारत आज बेहतर हाल में होता।

अपडेट

जीएसटी विधेयक अंत में 2016  मानसून सत्र के दौरान राज्य सभा द्वारा पारित किया गया था, शुरू में अरुण जेटली के द्वारा पेश किये बिल में, यूपीए के बिल से निम्न परिवर्तन थे

  1. नकारात्मक सूची में पेट्रोलियम/शराब को जोड़ना – यानी जीएसटी से बाहर रखना
  2. 1% की एक अंतर-राज्य लेवी
  3. यूपीए विधेयक में एक विवाद समाधान प्राधिकरण की बात की गयी थी, एनडीए बिल में उसे हटा दिया गया।

कांग्रेस ने भी बिल का विरोध किया था, लेकिन भाजपा के विपरीत उसका विरोध फिर सैद्धांतिक था, और उन्होंने आने विरोध के स्पष्ट कारण बताए। विशेष रूप से उन्होंने 1% लेवी की खत्म करने की मांग की, और जब एक बार अरुण जेटली ने इस  पर सहमति व्यक्त की, विपक्ष ने जिम्मेदारी का एक दुर्लभ प्रदर्शन किया, और बिल संसद के दोनों सदनों में पारित होने दिया। अब जिस रूप में ये एनडीए का बिल 2016 में पारित हुआ है, ये 2009-11 से मूल यूपीए बिल से ऊपर के केवल (1) में अलग था, अर्थात् जीएसटी से पेट्रोलियम / शराब को निकालना । अपने आप में इसका परिणाम ऊंचे कर की दर में हो सकता है। भाजपा के गैर जिम्मेदाराना और अवसरवादी और रुकावटवादी रवैये की वजह से हमारे देश ने 5-7 साल के बीच का विकास खो दिया है। यदि भाजपा ने वर्ष 2009-1 के दौरान कांग्रेस के साथ सहयोग किया होता,उन दोनों के बीच पर्याप्त राज्यों और संसद सीटें थीं, जो यकीनन एक बेहतर जीएसटी विधेयक पारित कर सकते थे।

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