पुलिस नियंत्रण कक्ष में मंत्रियों का मौजूद होना

मोदी ने कंट्रोल रूम में दो मंत्रियों की मौजूदगी से अनजान होने के बारे में झूठ बोला था। एसआईटी इन मंत्रियों के फोन रिकॉर्ड को ध्यान में रखकर,  इनकी भूमिका की जांच करने में विफल रही।

आरोप नं. V – मुख्यमंत्री द्वारा कैबिनेट मंत्रियों आई. के. जडेजा और अशोक भट्ट को डीजीपी कार्यालय और अहमदाबाद शहर नियंत्रण कक्ष में तैनात किया गया था ।

झूठ

मोदी ने एसआईटी को दिए जवाब में अनजान होने का दावा किया

Q.27. क्या आपने श्री अशोक भट्ट और श्री इंद्रकुमार जडेजा को क्रमशः राज्य कंट्रोल रूम और अहमदाबाद शहर नियंत्रण कक्ष, में बैठने के लिए अनुमति देने के लिए निर्णय लिया था, जिससे की दंगों पर डीजीपी और CP, अहमदाबाद शहर की निगरानी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा?
मोदी: इस तरह कोई निर्णय नहीं लिया गया था और कोई ऐसी चर्चा बैठक में हुई थी। बाद में, मुझे मीडिया से इस आरोप के बारे में पता चला था। हालांकि, मुझे कंरोल रूम में इन दो मंत्रियों के मौजूद होने के बारे में कोई भी व्यक्तिगत जानकारी नहीं है।

सबसे पहले, फरवरी-मार्च 2002 में, मोदी केवल गुजरात के मुख्यमंत्री ही नहीं थे, वह गृह विभाग के कैबिनेट मंत्री भी थे।

मोदी का दावा है कि वह इस तरह के अबोध और अनभिज्ञ गृहमंत्री थे,  कि उन्हें अपने जूनियर मंत्री श्री जदाफिया द्वारा लिए जा रहे निर्णयों के बारे में पता नहीं था , और केवल बाद में मीडिया से इन के बारे में पता चला था? जब खुद मोदी के भक्त ही उनकी हर छोटी बात पर तेज नज़र और ध्यान रखने की तारीफ करते रहते हैं, हमें बताया जाता है कि किस प्रकार वो अपने कैबिनेट सहयोगियों की परियोजनाओं को भी निरंतर ट्रैक करते हैं, और आम तौर पर उनकी कार्यशैली एक स्वेच्छाचारी शासक की बतायी जाती है, तो क्या यह सब विश्वसनीय है?

आश्चर्य की बात है, दंगों के तुरंत बाद 30 मार्च 2002 को टाइम्स ऑफ़ इण्डिया को एक इंटरव्यू में मोदी ने इसी आरोप का कोई खंडन नहीं किया था, बल्कि मंत्रियों को कण्ट्रोल रूम में बैठाने को एक “सामान्य और नियमित परंपरा” बताया था और दावा किया था यह “निगरानी और बचाव और राहत उपायों का समन्वय करने के लिए” किया गया था ।

प्रश्न: जब अहमदाबाद में दंगे भड़क उठे, तब आपके दो मंत्रियों की अहमदाबाद पुलिस नियंत्रण कक्ष में मौजूद होने की खबर है। आपकी उनके खिलाफ क्या कार्रवाई करने की योजना है?
A. इस राज्य में वरिष्ठ मंत्रियों द्वारा नियंत्रण कमरे से बचाव और राहत उपायों का निगरानी और समन्वय करने की हमेशा से ही एक परंपरा रही है। यह एक सामान्य और नियमित प्रक्रिया माना जाता है। भूकंप के दौरान, मंत्रियों ने पुलिस कंट्रोल रूम से सक्रिय रूप से राहत गतिविधियों का समन्वय किया था। मैं यह देख कर बहुत दुखी हूँ की यह भी सिर्फ मेरी सरकार को बदनाम करने के एकमात्र उद्देश्य के साथ, मीडिया के द्वारा तोडा मोड़ा जा रहा है

2010 में एसआईटी के साथ बात करते समय मोदी ना ही सिर्फ राज्य की इस परंपरा के बारे में भूल गए थे था, उन्होंने यह अद्भुत ज्ञान भी सीख लिया था कि अन्य मंत्रालयों का कानून और व्यवस्था मामलों में शामिल होने का कोई मतलब नहीं है। एक पूर्व प्रश्न के उत्तर में उन्होंने एसआईटी से कहा:

0.26। क्या तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री श्री अशोक भट्ट, और तत्कालीन शहरी विकास मंत्री श्री आई.के. जडेजा ने इस बैठक में भाग लिया था?
मोदी: इन दोनों मंत्रियों ने मंत्रिमंडल की बैठक में भाग ज़रूर लिया होगा, लेकिन वो कानून और व्यवस्था वाली बैठक में उपस्थित नहीं थे, क्योंकि यह उनके विषय नहीं था ।

एसआईटी आंशिक रूप से इस आरोप के साथ सहमत

कई स्थानों में,एसआईटी भी इससे सहमत है कि ये मंत्री वास्तव में पुलिस नियंत्रण कक्षों पर तैनात थे।

p29 2010 रिपोर्ट

हालांकि, श्री के. चक्रवर्ती ने कहा है कि उन्हने श्री अशोक नारायण द्वारा सूचित किया गया था, की सरकार द्वारा निर्णय लिया गया है कि आई.के. जडेजा राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए 28-02-2002 को पुलिस महानिदेशक के कार्यालय में बैठेंगे, यह राज्य नियंत्रण कक्ष में इसी कार्यालय में स्थित था । श्री अशोक नारायण उन्हें यह भी सूचित किया था कि इसी तरह श्री अशोक भट्ट अहमदाबाद शहर पुलिस कॉमिश्नर के कार्यालय में स्थित , अहमदाबाद शहर के नियंत्रण कक्ष में बैठेंगे ।

p31 2010 रिपोर्ट

तत्कालीन शहरी विकास मंत्री श्री इंद्रकुमार जडेजा ने एसआईटी को बताया है की उस समय के गृह राज्यमंत्री श्री गोर्धन जदाफिया ने उनसे 28-02-2002 को गांधीनगर में पुलिस महानिदेशक के कार्यालय में उपस्थित रहने का अनुरोध किया था अनुरोध किया था, ताकि दंगों की घटना, या अतिरिक्त पुलिस बल या किसी भी अन्य महत्वपूर्ण समस्या के बारे में नियंत्रण कक्ष में कोई भी जानकारी प्राप्त हो तो वह डीजीपी, गृह मंत्री आदि को सूचित कर सकें।

 

इस अनुरोध को देखते हुए, श्री जडेजा अगले 3/4 दिन डीजीपी श्री के चक्रवर्ती के कार्यालय में 3-4 घंटे के लिए के लिए मौजूद रहे। हालांकि, वह याद नहीं कर पाए कि उस दौरान उनके द्वारा क्या काम किया गया था, लेकिन यदि पार्टी कार्यकर्ताओं/आम आदमी से, किसी घटना के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त हुई थी, उसे डीजीपी को उचित कार्रवाई के लिए पहुंच दिया गया था।

चलिए अब हम इसको तार्किक रूप से देखें ।

दो कैबिनेट स्तरीय मंत्री को कुछ करने के लिए कौन आदेश दे सकता है? एक निचले स्तर का राज्य मंत्री †? या उनके बॉस, यानी की मुख्यमंत्री?

आई. के. जडेजा इतनी आसानी से यह कैसे भूल सकते हैं कि वह दंगों के दौरान क्या कर रहे थे? एसआईटी ने उनकी याददाश्त ताज़ा करने के लिए उन्हें उनके फ़ोन कॉल रिकॉर्ड्स क्यों नहीं दिखा दिए?

p32 2010 रिपोर्ट

सरकार द्वारा राज्य पुलिस कण्ट्रोल रूम और अहमदाबाद शहर पुलिस नियंत्रण कक्ष में दो मंत्रियों को बिठाने का यह निर्णय बहुत ही विवादास्पद था । हालांकि सबूत उपलब्ध है कि दोनों मंत्री संबंधित कण्ट्रोल रूम में गए थे । फिर भी, अभी तक वहाँ कोई सबूत नहीं मिले कि उन्होंने दंगों के साथ एक विशेष तरीके से निपटने के लिए पुलिस अधिकारियों को कोई निर्देश दिए। इसके मद्देनजर, यह आरोप केवल आंशिक रूप से साबित होता है

तो, आखिर एसआईटी क्या उम्मीद कर रहा था? पीसी पांडे और के चक्रवर्ती की तरह के अधिकारी खुले तौर पर और आसानी से ये मान लेंगे कि वे इन मंत्रियों के दबाव के तहत काम कर रहे थे? वे बस ऐसे ही अपनी कमियों को स्वीकार कर लेंगे, हस्तक्षेप को स्वीकार कर लेंगे?

वो बातें, जिन पर एसआईटी ने ध्यान न दिया

श्री आई.के. जडेजा तत्कालीन शहरी विकास मंत्री थे और श्री अशोक भट्ट तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री थे. दोनों का पुलिस मुख्यालय में रहने का कोई औचित्य नहीं था।

जाहिर है, जो पुलिस अफसर खुद इस मिलीभगत का हिस्सा थे, वो हमेशा इन मंत्रियों द्वारा प्रभावित होने से इनकार ही करने वाले थे। उस लाइन पर जांच करने के लिए किसी भी मुकदमा दायर करने लायक सबूत मिलने की संभावना नहीं थी, और ज़ाहिर है एसआईटी को कुछ मिला भी नहीं। महत्वपूर्ण सवाल जिसे एसआईटी द्वारा पता लगाया जाना चाहिए था , वह यह निर्धारित करना था क्या किसी भी संवेदनशील जानकारी को जमीन पर दंगाइयों तक पहुंचाया गया था? ये मंत्री कर क्या रहे थे?  वे वहाँ दंगे के सबसे खराब दिनों के दौरान ही क्यों थे? क्या यह सिर्फ एक संयोग है? क्या वहाँ से उनके द्वारा जयदीप पटेल को, और उसके बाद जयदीप पटेल द्वारा किए गए कॉल्स के बीच  में कोई पैटर्न है?

अहमदाबाद पुलिस नियंत्रण कक्ष से, अशोक भट्ट ने 4 बार मोदी की निजी ईपीएबीएक्स के माध्यम से नरेंद्र मोदी के साथ, 4 बार संजय भावसार के साथ और एक बार तन्मय मेहता के साथ बात की। 4 दिनों के दौरान जब अधिकतम हिंसा हुई थी, अशोक भट्ट ने या तो मोदी या मोदी के निजी कर्मचारियों के साथ कुल 21 बार बात की थी। नरेंद्र मोदी अब ये चाहते हैं कि हम उनकी इस बात पर विश्वास कर लें कि उन्हें अपने कैबिनेट मंत्री अशोक भट्ट की ठिकाने के बारे में पता ही नहीं था ।

अशोक भट्ट जब तथाकथित रूप से “दंगा स्थिति को नियंत्रित करने में लगे थे”, उस दौरान वह नरोदा पाटिया नरसंहार की मुख्य मुजरिम माया कोडनानी, और नरोदा गाम नरसंहार के मुख्य आरोपी जयदीप पटेल के साथ भी बात कर रहे थे।

भट्ट और जडेजा ने पुलिस कंट्रोल रूम में सिर्फ दंगों के सबसे खराब दिनों के दौरान ही मौजूद थे  – वो दिन जब पुलिस इस नियंत्रण कक्ष से मुश्किल से कुछ ही मील दूर नरोदा और गुलबर्ग सोसाइटी में नरसंहारों को रोकने में पूरी तरह से विफल रही थी। यह तो साफ़ है की ये दोनों हत्याओं को रोकने में कोई ख़ास योगदान नहीं दे सके ।एसआईटी ये पता करने  में विफल रही कि वे हत्याओं को बढ़ावा देने कितना योगदान दिए थे।


† मोदी के उप गृह मंत्री, गोर्धन जदाफिया ने 2007 के विधानसभा चुनाव के दौरान एक नई राजनीतिक पार्टी महागुजरात जनता पार्टी (MJP) शुरू की, बाद में इसका गुजरात पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी (GPP) में विलय हो गया।वह अब फिर से भाजपा के साथ है।

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