इशरत जहां फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामला

राज्य को किसी भी भारतीय नागरिक को गैर-न्यायायिक तरीके से मारने का अधिकार नहीं है । मारने के पश्चात भले ही कितने भी आरोप सामने आएं, जिनकी पुष्टि हो या नहीं, इस बुनियादी तथ्य को नहीं बदल सकते।

असली मुद्दा

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इशरत जहां ने कौन से अपराध किये थे, या कौन से अपराध करने वाली थीं,  तथ्य यह है कि उन्हें गैर-न्यायायिक तरीके से तरीके से मारा गया था।

राज्य को किसी भी भारतीय नागरिक को गैर-न्यायायिक तरीके से मारने का अधिकार नहीं है।

यहां तक कि एक पाकिस्तानी नागरिक अजमल क़साब को भी जब एक बार गिरफ्तार किया गया, कानूनन उसको भी एक निष्पक्ष सुनवाई करने का अधिकार था।

सबूत?

यदि गुजरात पुलिस या आईबी पहले से ही  ‘ठोस सबूत’ थे , तो वे 10 साल बाद क्यों उभर रहे हैं? ये सबूत इशरत जहां की गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त क्यों नहीं थे? अगर इशरत लश्कर सदस्य भी थी , और गुजरात पुलिस के पास इसका सबूत था, उसे गिरफ्तार करिये, खुफिया जानकारी प्राप्त करिये। गैर-न्यायायिक तरीके से मार कर उसके लिए सहानुभूति उत्पन्न क्यों की जाए? यहाँ मूर्ख कौन है?

जब राज्य की पोलीस मशीनरी एक फ़र्ज़ी मुठभेड़ करवा सकती हैं, लाश के पास एक AK-47/56 बरामद करवा सकते हैं,  तो फिर पर्स या किसी भी अन्य छोटा मोटा “सबूत” बरामद करवाना या गायब करवाना इनके लिए बहुत आसान है।

इस मामले में भी गुजरात हाई कोर्ट एक एस.आई.टी. के गठन का आदेश दिया था। जाहिर बात है, जो मोदी के भक्त, दिन रात एक दूसरी एस.आई.टी. की तथाकथित ‘क्लीन चिट’ रट लगाए रहते हैं, वो इस एस.आई.टी. के निष्कर्ष को “अंतिम ब्रह्म सत्य” के रूप में नहीं मानते  हैं। एक आईबी/पुलिस चालक की सहित, कई गवाहों से ये बात साबित होती है कि इशरत को कुछ दिनों पहले गिरफ्तार कर लिया गया था, और एक फार्महाउस में रखा गया था।

 

संघी प्रोपगैंडा इशरत के लश्कर के साथ सम्बंध साबित करने की लगातार कोशिश कर रहा है। एक पत्रकार ने एक अटकलबाजी भरा लेख लिखा, की आईबी रिपोर्ट तोडा मरोड़ा गया था, और इस बात को बहुत फैलाया गया। लश्कर से सम्बन्ध को लेकर ही अमरीकी दूतावास के कानूनी सलाहकार का फोटोशॉप में तैयार किया गया एक फ़र्ज़ी पत्र भी सोशल मीडिया पर वितरित किया है।

हेडली गवाही-सुनी सुनाई बात की सुनी सुनाई बात

डेविड हेडली ने शुरू में कहा कि वह लश्कर के किसी भी महिला सदस्य के अनजान था। उसके बाद, श्री उज्ज्वल निकम (बिरयानी की झूठी कहानी बनाने  के लिए प्रसिद्ध) उसे 3 नाम देता है, और वह इशरत नाम का चयन करता है। यह किसी भी अदालत में गवाह के मुंह में शब्द डालने के नाम पर अस्वीकार कर दिया जाएगा। वैसे भी डेविड हेडली ने यही कहा की उसने इशरत  का नाम किसी और व्यक्ति से सुना था, क्या डेविड हेडली ने कभी कहा कि उसने व्यक्तिगत रूप से बातचीत की? नहीं. वह कह रहा है उसे किसी के द्वारा बताया गया है.

अगर हम इस ‘मल्टीपल च्वॉयस’ प्रश्न पर डेविड हेडली की प्रतिक्रिया को सच के रूप में स्वीकार करते हैं, और अगर हम पक्षपाती नहीं हैं, तो हम इतना ही विश्वास असीमानंद के कथनों, या बाबू बजरंगी को बयानो को भी देंगे। एक सामान तर्क लगाइये । तहलका स्टिंग में बाबू बजरंगी की गवाही की तो कम से कम 3-4 अन्य लोगों द्वारा भी पुष्टि हुई थी।

लेकिन, ये मोदी भक्त हमारे न्यायालय के निर्णय को स्वीकार क्यों नहीं कर रहे और एक पाकिस्तानी नागरिक के बयान पर यह स्वीकार करते हैं? इसके अलावा, डेविड हेडली को इस गवाही से पहले भारत सरकार के द्वारा माफ़ किया गया है, और कोई भी देशभक्त इस बात पर हैरान या परेशान नहीं है?

सत्ता का खेल

अमित शाह मामले निपटाने वाला सुप्रीम कोर्ट जज केरल का राज्यपाल बन गया है, और आईबी अधिकारियों में से एक – श्री पिल्लै अडानी समूह में एक निदेशक बन गया है। सब बहुत ही संदिग्ध है।

सेवानिवृत्ति से ठीक पहले जज सताशिवम ने एक दूसरे विचाराधीन केस का हवाला देते हुए अमित शाह के खिलाफ एक मामला खारिज कर दिया था ।

इसके कुछ ही दिनों बाद, सोहराबुद्दीन का भाई, इस दूसरे केस को वापस ले लेता है। खैर, उसके लिए तारीफ़ की बात है कि वह अकेले 11 साल के लिए लड़ाई लड़ा , लेकिन कुछ हाल ही में बदल गया।

सत्यमेव जयते।

संदर्भ:

  1. यह था हत्या सबसे अधिक बेईमानी – हिंदू, 22 नवंबर, 2011
  2. इससे पहले कि मैं अमित शाह के खिलाफ मामला वापस ले लिया मुझे धमकी दी थी: Rubabuddin
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