मोदी ईमानदार है – “एक मिथक कथा”
Contents
भ्रष्टाचार और क्रोनियों के साथ पक्षपात के तमाम ठोस सबूतों के बावजूद, मोदी की ईमानदार होने की छवि, और “ना खाऊँगा और नाखाने दूंगा” की सुप्रसिद्ध डॉयलोगबाजी, फ़र्ज़ी समाचारों और जांच को छुपाने की बुनियाद पर बनाई गयी है।
नकली मसीहा का आगमन
- 2005 में मोदी ने अपनी विशिष्ट “फेंकू” शैली में बहुत धूमधाम के साथ घोषणा कर डाली कि गुजरात राज्य पेट्रोलियम निगम (जी.एस.पी.सी.) द्वारा कृष्णा गोदावरी बेसिन में 220,000 करोड़ रुपये की गैस पाई गई थी और साथ ही यह कहा गया कि 2007 तक भारत को गैस आयात करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।10 साल बाद विशेषज्ञों की राय के खिलाफ जाकर 20,000 करोड़ रुपए बर्बाद करने के बाद मोदी की इस सनक ने कंपनी को दिवालिया कर दिया था। जीएसपीसी ने अपने पैसे का दुरुपयोग किया और कथित तौर पर ऐसी संदिग्ध और अनुभवहीन कंपनियों के साथ मिलकर काम किया जिन्हें समुद्र में ड्रिलिंग का कोई अनुभव ही नहीं था।[2] गुजरात के सरकारी खजाने को 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान होने के बाद प्रधान मंत्री मोदी ने बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं को छुपाने के लिए ओएनजीसी को जीएसपीसी गैस क्षेत्रों का अधिग्रहण करने के लिए मजबूर कर दिया।[3]
- 400 करोड़ का मत्स्य पालन घोटाला जिसमे निविदा (टेंडर) आमंत्रित किए बिना पसंदीदा पार्टियों को अनुबंध प्रदान किया गया।[4]
- दो सप्लायरों ने सरकार के साथ मिलीभगत करके आंगनवाड़ियों को पूरक पोषण एक्सट्रूडेड फोर्टिफाइड ब्लेंडेड फूड (ईएफबीएफ) आपूर्ति करने के लिए आपसी सांठ-गाँठ के साथ बोली लगाई। ₹500 करोड़ के ठेके मुट्ठी भर ठेकेदारों, खासकर कोटा दल मिल्स और मुरुलीवाला एग्रोटेक को ही बार बार मिलते रहे। 2006 के सर्वोच्च न्यायालय ने खाद्य उत्पादन के विकेन्द्रीकरण और 2010 के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश के मुताबिक राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लंघन किया था।[5]
- ₹500 करोड़ की सुजलाम सुफ़लाम योजना में चावल घोटाला। 2003 में घोषित 6237.33 करोड़ सुजलाम सुफ़लाम योजना (एसएसवाई) को 2005 तक पूरा किया जाना था। गुजरात विधानसभा की सार्वजनिक लेखा समिति ने सर्वसम्मति से एक रिपोर्ट तैयार की। जिसमें 500 करोड़ रुपये का घोटाला की बात थी, जो कभी भी पेश नहीं की जा सकी। जांच में भी देरी की गई।[6]
- जीएसपीसी के पिपावव पावर स्टेशन के शेयरों में से 49% शेयर स्वान एनर्जी को 381 करोड़ रुपए की कम राशि लेकर बेच दिये गये। उचित प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए ओर अधिकतम मूल्य प्राप्त करने के लिए अन्य कंपनियों की किसी भी निविदाओं (टेंडर) को आमंत्रित ही नहीं किया गया।[7]
- सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात में फोर्ड, एलएंडटी,अदानी, एस्सार और रिलायंस को अनुचित लाभ देने के लिए सरकारी खजाने को 580 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।[8]
भूमि सौदों में किए गए कई घोटाले:
- गुजरात सरकार ने गीर बफर ज़ोन में 92.5% छूट पर आंनदीबेन की बेटी के बिज़नेस पार्टनर को 422 एकड़ जमीन आवंटित की। 245 एकड़ जमीन जिसकी कीमत 145 करोड़ रुपये थी उसको सिर्फ 1.5 करोड़ में दे दिया गया था।[9][10]
- 16,000 एकड़ जमीन अदानी समूह को 1- 32 रुपये प्रति वर्गमीटर में आवंटित की गई, जबकि उस जमीन का औसत बाजार मूल्य 1100 रुपये प्रति वर्ग मीटर था और कुछ लोगो ने तो उस जमीन के लिए 6000 रुपये प्रति वर्ग मीटर का भुगतान तक किया था। यहा साफ तौर पे अडानी समूह को 6,546 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ पहुँचाया गया। फोर्ब्स पत्रिका ने बड़े पैमाने पर शोध करके एक लेख के रूप में इसे प्रकाशित भी किया था।[11]
“अदानी ने 7,350 हेक्टेयर जमीन किराए पर दि थी, जिसका अधिकांश हिस्सा 2005 से गुजरात सरकार ने कच्छ की खाड़ी में मुंद्रा नामक एक क्षेत्र में अडानी को दिया था।
फोर्ब्स एशिया के पास उन समझौतों की प्रतियां हैं जो बताते हैं कि अडानी समूह को ये जगह 30 साल तक रिन्यूएबल लीज पर 1 U.S सेंट प्रति वर्ग मीटर से भी कम रुपये में दिया था। जिसका अधिकतम किराया 45 U.S सेंट प्रति वर्ग मीटर था। अडानी ने बदले में इस जमीन को अन्य कंपनियों को भारीभरकम रकम 11 डॉलर प्रति वर्ग मीटर के किराये पर दे दिया, जिसमें सरकारी स्वामित्व वाली इंडियन ऑयल जैसी कंपनी भी शामिल थी। “
- मोदी और उनके प्रचार प्रपोगेंडा दावा करते है कि मोदी द्वारा श्री रतन टाटा को किये गए “सुस्वागतम” के एक SMS संदेश ने टाटा को गुजरात की औऱ प्रस्थान करने के लिए प्रेरित किया। बेशक, कोई व्यापारी इतना मूर्ख नहीं होगा। सच्चाई यह है कि जब टाटा नैनो कार प्लांट के लिए एक वैकल्पिक स्थान तलाश कर रही थी तब मोदी उन्हें लुभाने के लिए उनके सामने नतमस्तक हो गए 11000 एकड़ जमीन 900 रुपये प्रति वर्ग मीटर पर टाटा को दे दी गयी, जबकि उस जमीन का बाजार मूल्य बहुत अधिक था। गुजरात में प्लांट की स्थापना के लिए टाटा मोटर्स को 456 करोड़ रुपये का “ऋण” भी दिया गया था। अनुमान बताते हैं कि 33,000 करोड़ की कुल सब्सिडी गुजरात सरकार ने टाटा मोटर्स को दी थी।[12] मोदी ने टाटा के इस कदम का इस्तेमाल अपने स्वयं के प्रचार के लिए किया, और यह सब हुआ था उन पैसों की बदौलत जिसे भारतीय करदाताओं ने कर देकर चुकाया था। [13]
- इंडिगोल्ड रिफाइनरीज़ भूमि घोटाला – रिफाइनरी के लिए सस्ती भूमि आवंटित करने के बाद राज्य सरकार ने इंडिगोल्ड रिफाइनरी की 200,000 वर्ग मीटर भूमि को अपने कब्जे में लेने की बजाय उसे अल्युमिना रिफाइनरी को बेचने की अनुमति दे दी। यह सौदा राज्य के खजाने में लगभग 40 करोड़ के आसपास को चूना लगाने वाला साबित हुआ।[14]
- अहमदाबाद के बीचो बीच में प्रमुख विद्यालय की 16 एकड़ जमीन का हिस्सा टेंडर में छेड़छाड़ करके एक होटल बनाने के लिए बेच दिया गया था। इस सौदे की दलाली खुद मुख्यमंत्री द्वारा की गई थी।[15]
अब भक्त कह सकते हैं कि, अगर इन सबमे क्रोनी पूंजीवाद की बू आती भी है तो क्या हुआ ? एक मुख्यमंत्री अपने राज्य में अधिक निवेश पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। तो क्या होगा अगर वह अपने क्रोनी दोस्तों को फायदा पहुंचा के करदाताओं के पैसे को बर्बाद कर रहे हैं, कम से कम इनमें से कुछ, जैसे टाटा प्लांट, लंबे समय में राज्य के लिए फायदेमंद होगा।
पहले तो इतना ज्यादा झुककर निवेश को आकर्षित करने के लिए अनुचित पक्षपात और अनुचित फायदे पहुँचने का कार्य केवल यहीं दिखाता हैं कि “गुजरात मॉडल” के सारे दावे नकली हैं। अन्य राज्य ऐसे मुफ्त में ज़मीन दिए बिना गुजरात से अधिक निवेश आकर्षित करने में सफल रहे थे। अगर “वाइब्रेंट गुजरात” वास्तव में 14 सालों से इतना सफल रहा हैं, तो गुजरात में सरकार को इतने सारे एहसान दिए बिना ही, और किसी भी कीमत पर, निवेश करने और कारखानों को स्थापित करने के लिए कॉर्पोरेट्स की भीड़ लग जानी चाहिए थी।
दूसरा, अगर मोदी वास्तव में “ईमानदार” थे, तो उन्होंने 2003 से 2013 के बीच एक दशक से अधिक समय तक लोकायुक्त पद को खाली क्यों रखा? [16] इसके अलावा, अगर मोदी चाहते तो पूरी ईमानदारी से इन आरोपों की जांच कर लेते और अधिकारियों या मंत्रियों को दंडित करते। अगर वह एक लड़की पर नजर रखने के लिए 10 पुलिस अधिकारियों को लगा सकते है, तो वह अपने करीबी सहयोगी और उत्तराधिकारी अनन्दिबेन के जमीन के सौदों से इतने अनजान कैसे थे?
इसके अलावा, ध्यान दे कि इसी “सेना प्रेमी” और “राष्ट्रवादी” मोदी ने 93 एकड़ जमीन रहेजा ग्रुप को 470 रुपये प्रति वर्ग मीटर में आवंटित की [17] और भारतीय वायु सेना के दक्षिण पश्चिम वायु कमान (SWAC) को 100 एकड़ भूमि के लिए 1100 रुपये प्रति वर्ग मीटर का भुगतान करने को कहा गया।[18]
इससे पता चलता है कि हमारे सशस्त्र बलों की तुलना में मोदी के लिए उनके क्रोनी पूंजीवादी मित्र अधिक महत्वपूर्ण है।
गुजरात में नेता और पूँजिपतियों के परस्पर लूटतंत्र का जन्म
मोदी के करीबी क्रोनी पूंजीवादी मित्रों के बीच, एक नाम सबसे प्रमुख है- वो है गौतम अदानी। मुंबई में हीरों के व्यापार में सफलता के साथ, अदानी 90 के दशक के मध्य में गुजरात चले गए और प्रभावी रूप से तरक्की किये। 6 अक्टूबर 2001 को जब मोदी को शपथ दिलाई गई थी, उस समय अदानी 3,000 करोड़ रुपए के टर्नओवर के साथ एक अपेक्षाकृत मामूली खिलाड़ी थे, उस समय अदानी समूह का बाजार मूल्य रिलायंस समूह का 1/500 वां हिस्सा था।[19]
1995 और 2001 के बीच, गुजरात की राजनीति और विशेष रूप से भाजपा के अंदर की राजनीति में काफी हलचल चल रही थी। 2003 में गुजरात में होने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए लालकृष्ण आडवाणी ने केशुभाई पटेल की जगह को मोदी को दे दी, आडवाणी ने वरिष्ठ राज्य के नेताओं को छोड़ कर मोदी जैसे राजनीतिक नौसिखिये को चुना। आडवाणी प्रधानमंत्री बनने की योजना बना रहे थे और गुजरात भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण राज्य था। यह सुनिश्चित करने के लिए कि गुजरात उनके नियंत्रण में रहे, वे गुजरात में एक बाहरी व्यक्ति चाहते थे जो पार्टी की उच्च कमांड पर निर्भर होगा।
मोदी ने गुजरात में 2001 में प्रभार संभाला था, यह जानते हुए कि उन्हें राज्य के चुनावो में जीतना होगा। मोदी प्रमोद महाजन पर निर्भर नहीं होना चाहते थे, जो भाजपा के फण्ड का प्रबंध कर रहे थे। मोदी अपने खुद के धन के स्रोत चाहते थे, लेकिन यह आसान नहीं था. उद्योग जगत को इस आरएसएस (RSS) प्रचारक के बारे में संदेह था। अपने पहले वर्ष में मोदी ने सभी व्यवसायियों को अपने से दूर ही रखा था। अडानी का बिज़नेस तेजी से बढ़ने के कारण मोदी ने अडानी पर विश्वाश नही किया था और उन्हें लगा कि अडानी उनके प्रतिद्वंद्वी केशुभाई का करीबी था। अडानी को मोदी के अंदरूनी सर्कल में पहुंचने के लिए अक्टूबर 2001 से सितंबर 2002 तक पूरे एक साल का समय लगा।
यह 2002 का गुजरात नरसंहार था, जिसने इन दोनों की किस्मत को बदल दिया।
हिंसा द्वारा हुए धार्मिक ध्रुवीकरण को भाजपा और मोदी ने अपने प्रचार के लिए बेहद शर्मनाक ढंग से इस्तेमाल किया । इस ध्रुवीकरण का उन्हें बड़े पैमाने पर लाभ मिला और 2002 के चुनाव में भाजपा को जीत हासिल हुई। अपेक्षाकृत अज्ञात प्रचारक मोदी संघ की कल्पना पर छा गए, और प्रधान मंत्री वाजपेयी के खिलाफ विद्रोह करने में भी सफल रहे।
पर, इस हिंसा ने उद्योग जगत को 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया था, और साथ ही स्थानीय और विदेशी निवेशकों को गुजरात में अपनी संभावनाओं के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया। सितंबर 2002 तक नए निवेश आने खत्म हो गए थे। 2003 में, देश के सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक व्यापार संघ – भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) – ने नई दिल्ली में अपने सभागार में एक विशेष सत्र आयोजित किया: गुजरात के नए मुख्यमंत्री के साथ बैठक । इस बैठक का आयोजन मोदी के विशेष अनुरोध पर किया गया था।
इस सत्र के दौरान, भारतीय उद्योग के कई बड़ेदिग्गज, जैसे गोदरेज और बजाज ने गुजरात के बारे में जनता के सामने सार्वजनिक रूप से चिंता व्यक्त की। मोदी उस समय बहुत उग्र थे। मोदी भारतीय उद्योग जगत के अग्रणी लोगो पर चिल्लाये और बोले “आप और आपके छद्म-धर्मनिरपेक्ष मित्र यदि आप उत्तर चाहते हैं तो गुजरात में आ सकते हैं।” मोदी ने गोदरेज और बजाज से पूछा “अन्य लोगों का गुजरात की छवि खराब करने में निहित स्वार्थ है। आपका क्या स्वार्थ है”?[20]
मोदी ने अपना रोष गुजरात वापस ले गए और कुछ दिनों के भीतर मोदी के करीबी गुजराती व्यवसायियों के एक समूह- अदानी समूह के गौतम अदानी, कैडिला फार्मास्युटिकल्स के इंद्रवदन मोदी, निरमा समूह के कर्सन पटेल और बेकरारी इंजीनियर्स के अनिल बेकेरी ने एक प्रतिद्वंद्वी संगठन की स्थापना की, जिसको उन्होंने गुजरात के पुनरुत्थान समूह (RGG) का नाम दिया, (RGG) के सभी सदस्यों ने सीआईआई(CII) से इस आधार पर अपने नाम वापस लेने की धमकी दी की उन्होंने मोदी और सभी गुजरातियों का अपमान किया।
अदानी ने सितंबर-अक्टूबर 2003 में पहले व्हाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन के लिए 15,000 करोड़ रुपये की राशि देना का आश्वासन दिया। इसके बाद उन्होंने मोदी के साथ अपने सहयोग की स्थापना की और भारत और विदेशों में उनके लिए पैरवी करते हुए उनके उत्साही समर्थक बन गये।[21]
उधर दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार ने अपने मंत्रियों तक सीआईआई(CII) की पहुंच को सीमित करना शुरू कर दिया, जो की एक पैरवी संगठन के रूप में CII के प्रमुख मिशन को खतरे में डाल रहा था।
सीआईआई को आखिरकार पीछे हटना पड़ा। मोदी के खिलाफ बोलने का नैतिक साहस दिखाने वाले व्यापारियों को भी उनकी प्रशंसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा, ताकि मोदी तक पहुंचा जा सके। गुजरात के कारोबारी जिन्होंने मोदी की चमचागिरी की उन्हें मोदी ने शानदार ढंग से पुरस्कृत किया।
अगले दशक के भीतर, अधिकांश व्यवसायी यह कवायद सीख लेंगे – व्हाइब्रेंट गुजरात जैसे कार्यक्रमो में आइये,
मोदी की प्रशंसा और चमचागिरी कीजिये, मोदी इस प्रशंसा को हाईलाइट करेंगे और आपका और आपकी कंपनी के प्रचार भी करेंगे, बदले में आपकी मदद भी करेंगे।
गुजरात एक समृद्ध लघु एवं मझौले उद्यम क्षेत्र और एक सहकारी क्षेत्र के लिए जाना जाने वाला राज्य था। जो कि अब नेता और पूंजीपतियो की साठगांठ का एक उदहारण बनता जा रहा था। बस चंद बिज़नेस घराने कई प्रमुख बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में हावी थे।
मिलीभगत का नतीजा
2003-04 के बाद से अडानी के बिज़नेस की जबरदस्त वृद्धि हुई, जिसे बैंकों द्वारा व्यापक रूप से वितीय मदद मिली है। 2006-07 में, अडानी समूह का राजस्व 16,953 करोड़ रुपये का था और 4,353 करोड़ रुपये का कर्ज था। 2012-13 में, राजस्व ₹ 47,352 करोड़ जा पहुंचा और कर्ज 61,762 करोड़।
इस असाधारण वृद्धि ने लगातार इन आरोपों को जन्म दिया कि गुजरात सरकार ने अदानी समूह को अयोग्य लाभ पहुँचाया है।
- 2006 और 2009 के बीच, गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन ने खुले बाजार से प्राकृतिक गैस खरीदा और इसे खरीदी गई कीमत से कम कीमत पर अदानी एनर्जी को बेच दिया; CAG (सीएजी) का कहना था कि अडानी की कंपनी को 70.5 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ मिला है।
- CAG ने पाया कि गुजरात ऊर्जा विकास निगम ने अगस्त 2009 और जनवरी 2012 के बीच बिजली की आपूर्ति पूरी ना कर पाने के कारण अदानी पावर से 79.8 करोड़ का जुर्माना वसूला जो की बिजली खरीद समझौते के हिसाब से 240 करोड़ का होना चाहिए था।
- 2009 में डीआरआई(DRI) ने दो कारण बताओ नोटिस जारी किए, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अदानी समूह की सहयोगी कंपनिया- HEPL, ACPL और MOL ने (TPS) के तहत कथित रूप से असाधारण लाभ उठाया था, ये धोखधड़ी वाली सर्कुलर ट्रेडिंग में भी शामिल थे, यह संयुक्त अरब अमीरात से सोने के बार आयात करवाते और फिर उसको कच्चे जड़े हुए सोने के गहने के रूप में यूएई में वापस निर्यात करते थे। 9 अप्रैल, 2015 के एक आदेश के अनुसार, जो कि उस वर्ष 26 अगस्त को चार महीने की देरी से जारी किया गया था। सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (सीईएटीएटी) के सदस्य अनिल चौधरी और पीएस पृथि ने अदानी समूह के खिलाफ सभी आरोपों को हटा दिया। मोदी सरकार के तहत आने वाला DRI इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक समीक्षा याचिका दायर करने में अजीब लचीलापन दिखा रहा था जबकि वह याचिका 1000 करोड़ रुपये का राजस्व बचा सकती थी।[22]
- केंद्र में सत्ता आने के बाद, अदानी ने मोदी जी के साथ बड़े पैमाने पर यात्रा की है और मोदी के आशीर्वाद के साथ कई सौदे किये है। इनमें क्वींसलैंड, ऑस्ट्रेलिया में कोयले में निवेश शामिल हैं, और इजराइल के एलबिट के साथ संयुक्त व्यापार भी शामिल है, जो रॉफाल जेट के लिए हेलमेट माउंटेड डिस्प्ले सिस्टम की आपूर्ति करने वाला है, जिसे राफेल डील के तहत भारतीय वायुसेना के लिए खरीदा गया है।
- अगस्त 2016 में विशेष आर्थिक क्षेत्र(SEZ) अधिनियम, वाणिज्य विभाग द्वारा SEZ एक्ट 2005 के तहत रिफंड के दावों पर एक प्रावधान सम्मिलित करने के लिए संशोधित किए गए थे। संशोधन विशेष रूप से अदानी पावर लिमिटेड को एक अवसर प्रदान करने के लिए किया गया था ताकि वह सीमा शुल्क पर 500 करोड़ रुपए के रिफंड का दावा कर सके।[23]
मोदी ने 2014 के अपने चुनाव अभियान के दौरान बड़े पैमाने पर अदानी के जेट का इस्तेमाल किया।[24]
गुजरात पुलिस के कई पुलिस अधिकारी, जो 2002 को लेकर संदेह के घेरे में थे, और जिन्होंने संभवतः पुलिस रिकॉर्डों को नष्ट करके मोदी को बचाए रखने का काम किया, उन्हें अपनी रिटायरमेंट के बाद अदानी ग्रुप में आकर्षक पद दिए गए। मार्च 2013 में जब यह स्पष्ट हो गया था कि संयुक्त राष्ट्र के व्हार्टन स्कूल ऑफ बिज़नेस में आयोजित एक सार्वजनिक समारोह में शिक्षाविदों और छात्रों के दबाव के कारण मोदी को एक वक्ता के तौर पर हटा दिया गया है तब इस कार्यक्रम के मुख्य प्रायोजको में से एक अडानी ग्रुप ने अपनी वित्तीय सहायता वापस ले ली।
कोयला ओवर-इनवॉइसिंग घोटाला
अदानी अपनी इंडोनेशियन सहायक कंपनी से ज्यादा कीमतों पर कोयला आयात करने के घोटाले में अहम खिलाड़ी था। अंततः ज्यादा कीमतों में लिए कोयले का भार अंतिम उपभोक्ताओं पर पड़ रहा था। घरेलू उपभोक्ताओं को अदानी और कुछ अन्य द्वारा संचालित थर्मल पावर प्लांटों से उत्पन्न होने वाली बिजली के लिए अधिक भुगतान करना पड़ रहा था।
असल में, यह एक काले धन को वैध बनाने (मनी लॉन्डरिंग) का परिचालन था, जहां भारतीय कारोबार से हुए मुनाफे को छुपा के विदेशों में स्थानांतरित किया गया।[25][26][27]
इस घोटाले की जांच प्रवर्तन निदेशालय(ED) ने की थी, प्रवर्तन निदेशालय ने अदानी पर 5,500 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया।
स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम(SIT) से जुड़े एक वरिष्ठ ED अधिकारी के मुताबिक अगर ये मामला अपने तर्कसंगत निष्कर्ष पर पहुंचता हैं तो अडानी समूह को करीब 15,000 करोड़ रुपये का जुर्माना देना पड़ता।
उन्होंने कहा यह एक निर्विवाद मामला है। दस्तावेज बताते है किस तरह अडानी समूह ने 5,468 करोड़ रुपए दुबई के माध्यम से मॉरीशस की तरफ मोड़ दिए। अदानी समूह किसी भी गलत तरीके का इस्तेमाल करने से इनकार करता है। मोदी अपने जुमलो के ज़ोर पर हासिल सत्ता की सवारी पाने के बाद चुप चाप बैठे हुए है।[28]
मोदी के सत्ता हासिल करने के बाद से इस ईडी (ED) जांच, जिसने अहमदाबाद में अदानी के खिलाफ एक प्रारंभिक मुकदमा दर्ज कराया था और जिसे डीआरआई (DRI) निष्कर्षों का विवरण सौंपा गया था, का जो हश्र हुआ है, ये आँखें खोलने के लिए पर्याप्त है, । प्रवर्तन निदेशालय की अहमदाबाद शाखा के मुखिया अधिकारी जेपी सिंह पर सीबीआई (CBI) का छापा पड़ा जिसने जेपी सिंह पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगाया गया। महीनों की जांच के बावजूद CBI कुछ कुछ भी साबित करने में असफल रही ।
जेपी सिंह एक परुस्कृत अधिकारी थे जिन्होंने 10,000 करोड़ रुपये से अधिक के एक विशाल हवाला रैकेट का खुलासा किया था और एक क्रिकेट सट्टेबाजी रैकेट का भी पर्दाफाश किया जिसमें 5,000 करोड़ से अधिक रुपये शामिल थे।
सोचने वाली बात यह है कि अगर जेपी सिंह वास्तव में एक भ्रष्ट अधिकारी थे, जैसे की उनपर अब मोदी के शासन में आरोप लगाया जा रहा है, तब क्या वो हवाला रैकेट और बैटिंग रैकेट जैसे बड़े मामलों का खुलासा करके उनकी जांच करते? क्या वह कुछ सौ करोड़ लेकर आसानी से अदानी के साथ नहीं मिल जाते और अडानी के मामले को रफा दफा नही कर देते?[29]
मुंबई क्षेत्रीय कार्यालय के दो वरिष्ठ अधिकारी, जो अहमदाबाद में जांच की देखरेख करते थे, उन्हें एजेंसी से बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया गया। जेपी सिंह के बॉस, प्रिंसिपल आयुक्त पी.के. दाश को बाहर कर दिया गया और मुंबई में एक अकादमी में एक मामूली पोस्टिंग दे दी गई।[30]
जब यह केस खोला गया खोला गया था तब राजन एस कटोच निदेशालय की अध्यक्षता कर रहे थे, उनके कार्यकाल को भी अचानक समाप्त कर दिया गया।
अदानी मामले के अलावा, अहमदाबाद ED के जांचकर्ता गुजरात के कुछ सबसे बड़े मनी लॉन्डरर्स (काले धन को वैध बनाने वाले लोगो) के भी पीछे पड़े थे।
दिलचस्प बात यह है कि, दिल्ली में मोदी सरकार के सत्ता में आने के तुरंत बाद अदानी के आयात घोटाले को डायरेक्ट्रेट ऑफ़ रेवन्यू इंटेलिजेंस (DRI) से लेकर सीबीआई को सौंप दिया गया। सीबीआई कार्यालय में, इस मामले की निगरानी तब के विशेष निदेशक अनिल सिन्हा द्वारा की गई। अनिल सिन्हा ने अदानी के मामले के साथ क्या किया यह अब तक किसी को भी नही पता लेकिन कुछ महीनों के बाद वह सीबीआई के बॉस जरूर बन गए। सूत्रों का कहना है कि सिन्हा आजकल गौतम अदानी के करीबी हैं।
प्रत्यक्ष भ्रष्टाचार के ठोस सबूत
हमने अब तक जो मामले ऊपर सूचीबद्ध किये है वह उन मामलों की एक सूची है जो भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करते हैं,जिनकी जांच नहीं की गयी- जैसे कि गुजरात के मामलों में सामने आया। और जहां एक चहेते पूंजीवादी दोस्त के खिलाफ हो रही जांच में रुकावट पैदा कर उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया हो- जैसा कि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा की जा रही ज्यादा कीमत के कोयला इनवॉइस घोटाले के मामले में हुआ।
अगले खंड पर चर्चा करने से पहले, याद रखें कि आगस्टा वेस्टलैंड की जांच के मामले में “AP FAM” का यह एक नोट काफी लोगों के लिए यह मानने के लिए पर्याप्त था की इसका मतलब अहमद पटेल और गांधी परिवार से संभंधित है। बिहार के चारा घोटाला मामले में, CM लालू यादव को सीबीआई कोर्ट ने सिर्फ परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर
दोषी पाया था, जिसमे उन्होंने उन दो अफसरों की नौकरी अवधि को बड़ा दिया था जो घोटालो में सहापराधी थे।[31]
अक्टूबर 2013 में, जब केंद्रीय जांच ब्यूरो ने हिंदलको कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले में तत्कालीन जांच के सिलसिले में आदित्य बिड़ला समूह की कंपनी के दिल्ली कार्यालय पर छापा मारा था। तब सीबीआई ने करीब 25 करोड़ की बेहिसाबी नकदी और कई दस्तावेजों को “आपत्तिजनक” बताया और आयकर विभाग को सूचित किया, जिसने अगले दिन एक छापा मारा था। इस छापे में कई कागजात बेहिसाब नकद से संबंधित कई ईमेल कन्वर्सेशन, हवाला लेनदेन जिसमे भ्रष्टाचार होने के सबूत दिखाई दिए थे। और महत्वपूर्ण राजनेताओं को भुगतान करने की एंट्रिया, सहित “गुजरात CM– Rs 25 crore (12-done-rest?)”
एक अलग जांच में, आयकर विभाग ने 22 नवंबर 2014 को सहारा पर छापा मारा,जिसने कुछ कंप्यूटर प्रिंटआउट्स को उजागर किया, जिसमें वरिष्ठ राजनेताओं किये कथित भुगतान को स्पष्ट रूप से स्पष्ट शब्दों में संदर्भित किया गया था, जैसा कि बाद में सामने आया, 2013 और मार्च 2014 के बीच[32]
- 40 करोड़ रुपये नकद “अहमदाबाद में मोदीजी को दिए गए ” [अन्य दस्तावेजों में उन्हें सीएम गुजरात को दिया नगद कहा गया है]
- 10 करोड़ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को दिया गया [शिवराज सिंह चौहान]
- 4 करोड़ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को (रमन सिंह)
- दिल्ली के मुख्यमंत्री को 1 करोड़ रुपये, जो उस समय “शीला दीक्षित” थी
न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति रॉय की एक बेंच द्वारा इस की जांच के लिए एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया गया। याचिका खारिज करने का मुख्य कारण यह था था कि माननीय न्यायाधीशों ने इन ऐंट्रीयो को
“बहीखाते की पुस्तकें “, के रूप में नहीं माना क्योंकि उनमे सर्पिल या स्थायी बाइंडिंग नही थी, और क्योंकि यह दस्तावेज आधिकारिक खातों का हिस्सा नही थे।
उन्होंने यह जांच करने में अनदेखी करी की इन नकद लेन देन की किसी अन्य संबंधित खातों में पुष्टि होती है या नही। इस मामले में, सहारा का नगद लेन देन का Marcomm की लेजर्स एंटरिओ से मिलाप होता है, जहां पर नेताओ को किये पैसे के भुगतान को प्राप्त और वितरित किया गया,इसका सबूत Marcomm एक्सेल शीट के रूप में उपलब्ध है। कहने की भी ज़रूरत नहीं है कि यह निर्णय एक बहुत ही खतरनाक मिसाल बनाता है। भ्रष्टाचार बंद-किताबो में ही होता है। अपराधी अपने लेन देन का हिसाब वास्तविक खाते में नही रखते है। भविष्य में, इस निर्णय का इस्तेमाल कई लोगो द्वारा अपनी रक्षा के लिए किया जा सकता है। यह रिश्वत वास्तव में दी गयी या नही इसका पता केवल विस्तृत जांच के बाद ही लगाया जा सकता था।
हैरत की बात है, माननीय जजों ने भी ( निर्णय के पृष्ठ 16 पर धारा 21) का पालन किया है:
यह मानने के लिए बाध्य हैं कि न्यायालय को किसी भी महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकारी, अधिकारियों या किसी व्यक्ति के खिलाफ कुछ ठोस कानूनी तौर पर संज्ञेय सामग्री एवं सबूतों के अभाव में जांच के आदेश देते हुए थोड़ा बचके रहना पड़ता है।
आप अपने आप से पूछिये कि अगर अदालत केंद्रीय मंत्री ए राजा के खिलाफ जांच कराने के आदेश पर ऐसे ही बच के रहती तो फिर क्या हुआ होता? क्या 2-जी घोटाले का कभी खुलासा हो पाता ?
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस अरुण मिश्रा, सहारा रिश्वतखोरी मामले में सह-आरोपी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी थे, लेकिन कायदे के अनुसार, न्यायमूर्ति मिश्रा इस मामले की सुनवाई करने से अपना नाम वापस नहीं लिए, जो उनके व्यावसायिक आचरण के बारे में गंभीर सवाल उठाते हैं।[33]
न्यायमूर्ति मिश्रा मोदी के प्रधान मंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने के छह हफ्ते बाद जुलाई 2014 को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत हुए। इससे पहले न्यायमूर्ति मिश्रा सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत होने में 3 बार असफल रहे थे। कुछ महीने बाद, इस ही बेंच ने लालू यादव के खिलाफ मामला फिर से खोलने का आदेश दिया था।
निष्कर्ष
जैसा की इस लेख के शुरुआत में उल्लिखित है कि आरटीआई कार्यकर्ताओं के हाथों में भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गया था। मोदी जी के आफिस ने मोदी जी की डिग्री से संबंधित कई आरटीआई को ठुकरा दिया है। एक चीफ ईनफॉर्मेशन कमिशनर जिसने दिल्ली विश्वविद्यालय को यह जानकारी जारी करने का आदेश दिया था उसे तुरंत हटा दिया गया।
सीवीसी, सीआईसी, कैग और ईडी जैसे संस्थानों को मोदी के कार्यकाल के दौरान कमज़ोर कर दिया गया। यह वही पैटर्न दोहरा रहे है जिसे हमने मोदी के गुजरात में उनके 13 वर्षों के शाशनकाल में देखा। जहां लोकायुक्त नियुक्त नहीं किया गया था और कैग की रिपोर्टों को नजरअंदाज किया गया था, और विभिन्न पूंजीपतियो को फायदा पहुचाने वाले अधिकारियों के खिलाफ जांच की मांगो की कभी जांच ही नही की गई।
सत्ता अच्छे अच्छों को भ्रष्ट बना देती है। निरंकुश, बे-लगाम, बिना किसी चुनौती वाली सत्ता, जैसी की अब मोदी के पास है, और भी ज्यादा भ्रष्ट करती है।
राजीव गांधी भी बोफोर्स पर जेपीसी जांच के लिए सहमत हुए थे। लेकिन अपने खिलाफ खिलाफ प्रथम दृष्टि आपराधिक सबूत होने के बावजूद मोदी कभी ऐसा नहीं करेंगे। इस वक़्त विपक्ष कमजोर है, और मीडिया पर और अपनी पार्टी पर मोदी का नियंत्रण बहुत मजबूत है।
मोदी की छवि को फ़र्ज़ी समाचार, मीडिया प्रबंधन और उन संस्थानों के दमन के दम पर बनाया गया है जो आम तौर पर लोकतंत्र में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करते हैं। जिस तरह से उनकी सरकार ने अदानी की कीमत से अधिक चालान घोटाले की जांच में मदद की, अंबानी की 4 जी घोटाले पर, और इन्ही दोनों की राफेल डील पर फायदा पहुँचाया,वह भी बिना कोई विरोध के बिना, यह उनकी कार्य शैली का पर्याप्त संकेतक होना चाहिए।
भ्रष्टाचार निरंतर जारी है, वास्तव में यह अब अधिक बेरहमी से किया जा रहा है, जबकि लोगो का ध्यान लगातार गैर-मुद्दे जैसे कि बीफ, गौरक्षा की और भटकाया जा रहा है। अपने प्रतिद्वंद्वियों पर अपने पालतू मीडिया द्वारा कीचड़ उछलवाना, मीडिया बड़े पैमाने पर उसी कुलीन वर्ग द्वारा नियंत्रित है।
यह साफ है भ्रष्टाचार नेताओं द्वारा कई रूपों में किया जाता है- ठेठ भ्रष्ट राजनीतिज्ञ निर्लज्जता से रुपयों का गबन करते है या अपने परिवार को धनी बनाने के लिए रिश्वत का सहारा लेते है।
अब, आइए हम रूस के व्लादिमीर पुतिन को देखें, जिन्होंने विश्व के सबसे भ्रष्ट पूंजीपतियो की अध्यक्षता की है। सर्वजनीक जीवन मे पुतिन के मॉस्को में मामूली से 2 व्यक्तिगत फ्लैट है। पुतिन की बेटी कतेरिना के पास सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय में इतिहास के शोधकर्ता के तौर पर एक नौकरी है। हालांकि, अगर गहराई पर जाए तो आपको एहसास
होगा कि यह सिर्फ एक मुखौटा है। पुतिन के सहयोगियों के पास सैकड़ों अरबों डॉलर है, और इन फंडों का उपयोग पुतिन अपनी राजनैतिक जरूरत पूरी करने के लिए करते है।
मोदी ने भी पुतिन मॉडल को अपनाया है। वह भी स्वयं के लिए किसी तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त नही दिखाए देते। जो रिश्वत और एहसान वह लेते है वह संघ परिवार की मदद करने के लिए या अपने ही प्रचार के लिए लेते हैं, अपने या अपने परिवार के लिए नगद की रिश्वत नही लेते। उनका परिवार जो की मामूली जीवन शैली का मुखौटा ओढ़े हुए है, यहां तक की राजनीतिक जरूरत पैदा होने पर पैदल चल के बैंक से ₹ 4000 रुपये तक निकालने जाता है । मोदी जी के पूंजीपति मित्र चुनाव आने पर दिल खोलकर उनके महँगे चुनावी प्रचार को फण्ड करते है।
अंत में, दोनों तरीके का भ्रष्टाचार एक देश के लिए समान रूप से हानिकारक है। जब अनुभवहीन संयुक्त उद्गम भागीदारों को सिर्फ पूंजीपतियो को फायदा पहुचाने के लिए चुना जाता है, यह साफ साफ राष्ट्र की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है । निर्णय लेने वालों द्वारा वास्तविक रिश्वत ली जाए या नहीं, जब हमने एक विमान को बड़े हुए दामो पर खरीदा, तो करदाताओं के मेहनत के पैसे को बर्बाद किया गया ।
एक व्यक्ति, जिस पर नरसंहार जैसे गंभीर अपराधों को बढ़ावा देने का आरोप हो, का सिर्फ इसलिए समर्थन करना, क्योंकि वह “ईमानदार” छवि का है, बिल्कुल वैसा है जैसी एक बलात्कारी से शादी करने की मूर्खता सिर्फ इसलिये की जाए क्योंकि वह समय पर अपनी इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करता है। पर तब क्या होगा जब आपको पता चलेगा उसके टैक्स रिटर्न दाखिल करने की खबर भी सिर्फ गलत प्रचार और मीडिया प्रबंधन का परिणाम थी, और यह सच नहीं थी?
मोदी कोई ईमानदारी के मसीहा नही है। वह बहुत चतुर चालाक आदमी है। जिसका एकमात्र मकसद सत्ता में बने रहना है चाहे उसके लिए देश को कोई भी कीमत चुकानी पड़े।
इस लेख का हिंदी अनुवाद agilefacts.in के साथियों ने किया है, जिनका हम आभार व्यक्त करते हैं
बहुत ही उत्कृष्ट लेख है ऒर एकदम सत्य हॆ एक एक तथ्य। लेखक को साधुवाद। इसी भांति की अन्य रचनाओं का इन्तजार रहेगा । किन्तु ये जन मानस तक पहुंचे यह सुनिश्चित करने का अनुरोध।
हमारा उत्साह हौसला बढ़ाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
जन मानस तक पहुंचाने में आप सभी के सहयोग की आवश्यकता है, हमारे पास भाजपा आई टी सेल की तरह संसाधन नहीं हैं, आप लोगों को ही मदद करनी होगी, फेसबुक, व्हाट्सएप्प आदि पर अपने मित्रों तक अवश्य पहुँचायें
Modi is honest
Bhut Hi Asli Article Hai.Is me Likhi Ek Ek Baat Bilkul Sahi Hai.Fenku Jumlebaaz Narendra Damodar Modi Chounkidaar Chor Or Takle Tadipaar Amit Shah Ko Hatao Desh Bachao.